Book Title: Sachitra Mukh Vastrika Nirnaya
Author(s): Shankarmuni
Publisher: Shivchand Nemichand Kotecha Shivpuri

View full book text
Previous | Next

Page 39
________________ मुखवस्त्रिका । [७] इस हानि से बचने के लिए, इस महान् पातक से पीछा छुड़ाने के लिए मुखवास्त्रिका की आवश्यकता हुई। और इस ही लिए आदि पुरुषों ने इस का आविष्कार किया। और दयार्द्र महापुरुषों के इस को हर समय मुख पर धारण करने का कारण भी यही है। मुखवस्त्रिका का प्रचार कब से हुआ और इस को कौन लोग बान्धते है ! . कई धर्मों का प्रादुर्भाव पीछे से हुआ है अर्थात् कई सं. प्रदायों ने जन्म इस आधुनिक समय में ग्रहण किया है । इस प्रकार जैन धर्म युग धर्म और प्रचलित धर्मों में से नहीं है। प्रत्युत सनातन काल से पृथ्वी पर प्रचलित है। कितने ही लोगों का कथन है कि, जब वुद्धने जीव हिंसा के भीषण काण्ड से उद्वेलित होकर बुद्ध धर्म अर्थात् अहिंसा का प्रचार किया था उस समय भगवान् महावीर भी प्रकट हुप और तब से ही जैन धर्म का जन्म हुआ है। परन्तु यह कपोल कल्पित मन घईत है। जैन धर्म के अस्तित्व का पता तो विचारा इतिहास भी हार पा चुका है। इस धर्म का प्रादि काल अतीत के गर्भ में विलीन हो रहा है हां, भगवान् महा वीर गौतम बुद्ध के समकालीन अवश्य थे । और उस समय तप और अहिंसा का प्रचार प्रवल रूप से हुआ था। परन्तु इस पर यह कहदेना कि, उसी समय में इस धर्म का प्रादुभाव हुश्रा है यह सिद्ध करना लच्चर और थोथी दलील है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101