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मुखवास्त्रिका ।
यदि सामाजिक उन्नति की भाति लोग धार्मिक उन्नति में लगजाएं, तो समाज सुधार अपने आप हो जा सकता है ।
भद्र पुरुपों । यह वीर वसुंधरा, यह पुण्य क्षेत्र धर्म की रंग भूमि है। अन्य देशों के अधिवासी भले और किसी तरह अपनी उन्नति करलें, परन्तु धर्म प्राण भारत वासी धर्म में ही अपनी उन्नति कर सकते है । क्योंकि यहां के जल वायु से पले हुए पुरुषों को प्रकृति सव से पहले धर्म का ही उपदेश करती है।
कालान्तर से मेरे हृद्धाम में यह भावना उठी थी कि, सम्वा समाज सुधार कब और कैसे हो सकता है ? उस का प्रशस्त राज मार्ग कौनसा है ? तव स्वत ही इन विचारों का प्रादुर्भाव हुआ कि, "लोगों को धार्मिक उन्नति के पथ पर अग्रसर किए जावें ! धर्म के तत्व बतला कर उन के सूक्ष्म रहस्यों का उद्घाटन किया जाव' और उन की मार्मिक विवेचना द्वारा उसी में समाज की भलाई और उन्नति बतलाई जावे !!' सो इस के लिए धार्मिक पुस्तकें लिखी जाकर पाठकों के सामने रखना ही एक अच्छा उपाय हे यही सोच कर मैंने इस में हाथ डाला है।
सब से प्रथम मेरीकृति पाठकों के सन्मुख यही मुखवस्त्रिका निर्णय, रख रहा है। क्योंकि मुग्नवास्त्रिका के सम्बन्ध में लोगों को बहुत कुछ सन्दह और गलतफहमी है। और मन्दिरमागी साधु महात्माओं को भी इसका मुँहपर वाधने में बहुत वाद विवाद और हटाग्रह है।
में इसमें सबसे प्रथम यह बतलाऊँगा कि यह मुखवस्त्रिका असल में है क्या पदार्थ, और इस शब्द का क्या अर्थ है।