Book Title: Ratribhojan Pariharak Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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॥ ढाल त्रीजी ॥रे जाया तुज वीण घडी रे
बमास ॥ ए देशी॥ किणहीक अटवी ले गयोजी, तटिनी वहे थ ग ॥ घोडो तिहां ऊनो रह्यो जी,ढीली मूकी वा ॥१॥ नविक तुं पुण्यतणुं फल जोय ॥ पुण्यें प गल पोतें हुवे जी, जिहां तिहां संपत्ति होय॥न॥ श्वथकी नृप उतयो जी, पाणी पायो ताम॥
मुसतो थयो जी, वन देखे चिहुं पास ॥ ॥ ज० ॥३॥ नरपति तरुबाया जई जी, बेगे चिंते एम ॥ किहां श्राव्यो जाशुं किहां जी, त्राण उगरशे केम ॥ ज० ॥४॥ श्म मनमांहे विचारतां जी, ना री एक अनूप ॥ श्रावी पासें नृपनें जी,श्रत यौ वन रूप ॥॥॥ मन न चले तेहनुं चले जी, मा रे नयन त्रिशूल ॥ एक नारीने आंबली जी, नरने मे ले धूल ॥ ॥ ६॥ रमजम करती सुंदरी जी, दी ठी नयण वरंत ॥ कामातुर नृपनें कहे जी,सांजल तुं गुणवंत ॥ ज० ॥ ७ ॥ हुँ पाताल निवासिनी जी, दे वी नागकुमार ॥ मोही तुजने देखी ने जी, तुं मन्मथ अवतार ॥ ॥॥ ए वन मुज रमवा तणुं जी, नीतम अनुमति पामि ॥ रमं सदा हां वीने
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