Book Title: Ratribhojan Pariharak Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 27
________________ २५) ने बर तेही रे॥दोष न आवे हो तुम शिरे,सहुशुंथा य सनेहो रे ॥ एक० ॥॥ वात सुणावी हो ते न दी, महेंता मुज मन मानी रे ॥ चारे बुद्धि तुज नि मली, तुंतो गुणवंत ज्ञानी रे ॥ एक० ॥५॥ दूत द शो दिश पाठवी, राय सहुने तेडावे रे॥राय सहु दे शदेशना, श्रागंबरझुं आवे रे ॥ एक० ॥६॥ गुर्जर शोर पूरवी,मालव मरहठ स्वामी रे॥ कुंकण ला ट करणाटना, मेदपाट नहिं खामी रे ॥एक॥७॥ घोड चोड सवा लाखना,नोट वैराट कांबोजीरे॥देश कुणाल पांचालना,कोशल अधिपति मोजी रे॥एका जावंग कलिंग वखाणीये, जंगल अंग तिलंगा रे ॥मगध सिंध सिंहलपति, प्राविड दसारण रंगी रे॥ ॥एक ॥ ए॥ोण चीण हरमज धणी, मरुमंगल कुरुदेशी रे॥इत्यादिक देश देशना, स्वदेशीने परदे शी रे ॥ एक ॥१॥ श्राव्या निज परिवारशुं, पुत्र पुत्रा संजोडीरे॥ कहे जिनहर्ष अग्यारमी, ढाल जली परें जोडी रे ॥ एक ॥१॥ सर्वगाथा ॥ २०५॥ ॥दोहा॥ ॥वदेश तिहां श्रावीयो, नगर धारापुर दूत ॥ सनामांहे ऊनो रह्यो, अमरसेन पुर हुँत ॥१॥ बलि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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