Book Title: Ratribhojan Pariharak Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 29
________________ (२७) बोटुं हो ॥ १०॥ एहवे रूपें ध्यान ते साध, सामर ख्यो जयसेन समाधे हो ॥१०॥५॥ पूर्व चोपजामी ने कुमार, एहवो श्यो ए श्राकार हो॥अ॥ स्वा मी ए मुजने कहिये, मनमांहे अचरिज लहीयें हो ॥ १० ॥६॥ वाणी सुणी एहवी योगी, फरी चर्म ते उढ्यो रोगी हो ॥१०॥ थयो रूप अदृश्य तेवा रें, नृपसुत मनमांहे विचारे हो ॥ अ० ॥७॥ श्रच रिज मुफ चित्त उपायो, संन्यासी किहां सिधायो हो ॥०॥ बेगे तेणे गमन दीसे, इंग्रजाल जंजाल जगीशे हो ॥ अ० ॥॥ वली चर्म मूक्यो तेणे दूरे, जाणे तेज देखाड्युं सूरें हो ॥ अ० ॥ कंचन सम दीपे काया, पद्मासन ध्यान लगाया हो ॥ अ० ॥ ॥ए ॥ पूजे नृपसुत हितकामी, शुं कीg ए तें खा मी हो ॥ अ ॥ हुँ सिझ अबु ते बोले, ए चर्मने कोश् न तोले हो॥ ॥१॥ तुजने ए ख्याल देखा ड्यो, तुज चित्त संदेहें पाड्यो हो ॥१०॥ हुए रू प कुरूप उढेथी, थाये अदृशीकरण शुन तेथी हो ॥ ॥११॥ होवे सहज रूप मेलंतां, एम होये रमतां खेलंतां हो ॥ अ०॥ ए जाति चर्मनी एहवी, तुज श्रागल कही हती जेहवी हो ॥ अ० ॥ १२ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org


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