Book Title: Ratribhojan Pariharak Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(ए) ॥२॥बीदेतो कुममां पडे रे, बीहे नहिंतो रे सि हि ॥ विद्या श्राकाशगामिनी रे, बेहुमांहे एकनी वृद्धि रे ॥ पु० ॥३॥ योगी कहे शीको कस्यो रे,जो डी सामग्री रे एह ॥मंत्रतणुं पद वीसह्यं रे, काम न थाये सिकरे ॥ पु०॥४॥ कुमर कहे योगी जणी रे, विद्या जणी देखाड ॥ पदानुसारिणी मुज श्र रे, जोडं अक्षरमाल रे ॥ पु० ॥५॥ खोट काढुं विद्या तणी रे, लांगु ताहारी रे चिंत ॥ कारज सिम थाये सही रे, मंत्र जणो गुणवंत रे॥पु०॥६॥ परज पगारी तुं सही रे, मुजने मलियो रे मित्र ॥ विद्या प द पूरण करी रे, टालो मननी चिंत रे ॥ पु० ॥७॥ मंत्र सुणाव्यो कुमरने रे, पद पूस्युं ततकाल ॥ सिक पुरुष हो हीये रे, बोले वचन रसाल रे ॥ पु०॥ ॥ज चर्म अपूरव तुज नणी रे, आपुं ले तुं एह ॥ उपगारे उपगारडोरे, करीयें तो वधे नेहो रे॥ पु०॥ ॥ ए॥ विद्या पण शहां साध तुं रे,सिहि होशे तुज वीर॥वचनखरूं तुंमानजे रे, तुंडे साहसधीर रे॥ ॥ पु० ॥१॥ पहेलो तो साधो तुमें रे, सामग्री से योग ॥ तुम केडे हुं साधशुं रे, देई मन उपयोग रे॥ ॥ पु० ॥ ११॥ योगी कहे मुज साधता रे, तांतण
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