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॥ श्रथ ॥ ॥ श्रीज
॥ जिनहर्षसूरि विरचित ॥ ॥रात्रिनोजनपरिदारक रास ॥
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॥ आ ग्रंथने ॥ ॥रात्रिजोजनना परिहारथी उ
थयेला शुजफलने दर्शाव . नारो जाणीने ॥ ॥ सुदृष्टिजनोने रात्रिभोजननिषेध निमिर्ते दृष्टा तरूपें ज्ञान आपनारो समजीने तेनी॥
॥ द्वितीयावृत्तिने । शा0 नीमसिंद माणकें.
॥ श्री मुंबईमां ॥ ॥ निर्णयसागर मुद्रायंत्रमा मुद्रित करावी छे.
संवत् १९५२, सन १८९५.
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॥ अथ ॥
॥ श्री जिनदर्घसूरिकृत रात्रिभोज ननो रास प्रारंभः ॥
॥ दोहा ॥
॥ श्रीशंखेश्वर पास प्रभु, महिमा श्रीजग वास खं यक्ष जेहनो जागतो, पूरे वांबित यश ॥ जी,मूके न मूर्त्ति जेहनी, तुंरत जावे देह ॥ वारे चंद्र ल बिंब जराव्यं ह ॥ २ ॥ पूजी केता काललगें, जुव नपति धरणेंद्र || अठम करी पदमावती, याराधी गोविंद || ३ || जरासिंधुयें मूकी जरा, यादव कस्या अचेत ॥ प्रभुपद नमणे सींचीया, हुआ तुरत सचे त ॥ ४ ॥ शंखशब्द पुस्यो तदा, हर्ष धरी गोपाल ॥ थाप्पो नयर संखेसरो, थाप्पो पास दयाल ॥ ५ ॥
वे जग सहु जातरा, परता पूरे तास ॥ कलियुग मांदे कला वधी, सेवे सुर नर जास ॥ ६ ॥ तास च रण प्रणमी करी, हैयडे धरी उल्लास ॥ करूं स्वामी सुपसायची, रात्रि जोजन रास ॥ 9 ॥ सांजलजो श्रा लस त्यजी, याशे लाज अपार ॥ रात्रिनोजन वार जी, सांगली दोष विचार ॥ ८ ॥
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(२) ॥ ढाल पहेली ॥ चोपाश्नी देशी ॥ ॥ जो जो बानी विचारी खो, माणसटोकियो
आपशु तणी पर वयो रहे, रात्रि दिवस सर सदहे ॥१॥ दिवस बोडी जे राते खाय, राक्षस सरिखा ते कदेवाय ॥ माणस नहिं पण ते जमदू जाणे प्रत्यद दीसे चूत ॥२॥जे थया पूर्व ऋषी गण, तेणे जांख्यां ने शास्त्र पुराण॥हैयुं उघाडी
महोटा दोष कह्या जे जेह ॥३॥ पवित्र नही नांखी गोमती, सिंधु सरस्वती साबरमती ॥ गंगा यमुना गोदावरी, सीता सीतोदा गुण जरी ॥४॥ न दी नरबदा गया प्रयाग, निर्मल पावन नीर अथाग। दिननायक अस्ताचल जाय, रुधिर सरीखं जलते था य ॥५॥ नारतमाहे कयु जगवान, समजो जो हों य हैयडे शान ॥ रुधिर मांस पाणी ने अन्न, मानो श्रीमार्कम वचन्न ॥६॥व्रत करे केश एकादशी, धर्म कोजे मानव धसमसी ॥ पुःकर चांजायण तप करे, अंडशन तीरथ करतो फरे ॥ ७॥ एहवा धर्मी रय मी जमे,तेतो फोकट काया दमे ॥धर्म कह्यो तेहनो श्रप्रमाण, एहवां बोले वचन पुराण ॥ ॥ रातें क वन कयु नान, रातें देवू पण नहीं दान ॥ रातें
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(३) पूर्वज न लहे पिंम, रातें तर्पण नहिं अखंग ॥ए॥ दे वपूजा थाये नाहिं रात,फरे निशाचर करता घात ॥ रयणी उत्तम न हए काम, रयणी न जमीयें देती श्राम ॥१॥ वली प्रत्यक्ष देखाडु दोष, सांजलीनेती पजे संतोष ॥ मन मत धरजो को अमर्ष, पहे॥ ढाल कही जिनहर्ष ॥ ११ ॥ सर्वगाथा ॥ १ए । गु ॥दोहा॥
खं ॥माखी श्रावी अन्नमां,तो थाये ते थर जी,मूके न कीडी श्रावे किमे, तो जाये विद्या बुद्ध ॥१॥ जू जो पहोंचे पेटमां, वधे जलोदर रोग ॥ कोढ करे क रोलिया, थाये माग योग ॥२॥ वाल कंठ रोके स ही, वींबी सडे कपाल ॥ कांटो वींधे तालवू, तेणे नि शि जोजन टाल ॥३॥ पंखी जातिमा केटला, चूण करे नहिं रात ॥ तो माणस कहो किम करे, जेहथी पुर्गति पातासाची करीने मानजो,वात कहं सम जाय॥कथासरस ए ऊपरें,सांजलजो चित्त लाय ॥५॥ ॥ ढाल बीजी ॥ कपूर होवे अतिउज्ज्व
लो रे ॥ ए देशी ॥ ॥वबदेश रसीयामणो रे, नयर छारापुर नाम ॥ खोक तिहां सुखियां वसे रे, विलसे सुख अनिरामरे
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(४) ॥१॥ नाइ सुणजो कथा सुरंग ॥ रयणीनोजन टाल जो रे, थाये जेम उबरंग रे ना ॥ सुपए आंक जाश्रमरसेन राजा तिहां रे, पाले राज्य अनंग ॥ परी पाय लगावीया रे, कीर्ति जास उत्तंग रे॥ना
॥ चंजसा पट्टरागिणी रे, रूपें रति सादात॥ णे इंजनी अपहरा रे, सहु नारीमा जांत रे ॥ ना
जमर विलुको मालती रे, क्षण मूके नही सतम राय राणी मोहीयो रे,राखे अविहड रंग रे॥ ना० ॥४॥ राज्य संपूरण सहु परें रे, घरमां नवे निधान ॥ पण फुःख के एक वातनुं रे, नही तू पर्ने संतान रे ॥ नाश् ॥५॥ चित चिंता निशि दि न करे रे, करे अनेक उपाय ॥ पण डोरु श्रावे नहीं रे, पहोतो डे अंतराय रे ॥ नाश्ण ॥६॥ मुज केडे, कोण थायशे रे,राज्य तणो रखवाल ॥ मुजकेडें पूरो थयो रे, पडियो चिंता जाल रे ॥जाश्० ॥ ७॥ जिण घर पुत्र न चांजणा रे,तिणे अंधारो होय॥जग शूनो पुत्रां विना रे, हैये विचारी जोय रे ॥ जा ॥७॥ ते घर घरमांहे कयुं रे,जिणघर खेखे पुत्र ॥ पुत्र स फळे काहिसे रे, कोण राखे घर सूत्र रे ॥
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पुत्र विना कोण बापनो रे, बोलावे जस वास ॥ गते घाले पूर्वज जणी रे, मेले सुर श्रावास रे ॥नाश्॥ ॥१॥ निशिदिन खटक टले नहीं रे, राय तणार नमांहि ॥ ज्ञानी न जणावे किमे रे, राखे निजमा साही रे ॥ ना० ॥११॥ पाले राज्य जली परें न्यायवंत नूपाल ॥ ए जिनहर्ष थर एटली रे, बीजी ढाल रे । जाण ॥ १५ ॥ सर्वगाथान.सकेन ॥दोहा॥
ग्रा ॥अन्यदिवस परदेशथी,श्राव्यो नेट तुरंग॥शा लिहोत्र शास्त्रे कयां, लक्षण सहित सुरंग ॥१॥ब हुकन्नो कूखें सबल,अति सकोमल गात ॥ कुकडकंध सरोस मुख, नहानो पूछ सुजात ॥२॥ अश्व अमूल कगात चपल, देखें। एहवा राय ॥ असवार। करवा जणी, मनमा श्वा थाय ॥३॥ साजवाज करी सा बतो, राय थयो असवार ॥ कटक सुनट के. चल्या, रमवा नणी अपार ॥४॥ अश्व एडीशुं श्राहण्यो, पवन परें उपाय ॥ जेम जेम ताणे वाग तेम, राख्यो ही न रहाय ॥५॥ वक्रपणे ते शीखव्यो, वायें वा यमिखाय ॥ राजाने लेगयो,देखतां समुदायास
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॥ ढाल त्रीजी ॥रे जाया तुज वीण घडी रे
बमास ॥ ए देशी॥ किणहीक अटवी ले गयोजी, तटिनी वहे थ ग ॥ घोडो तिहां ऊनो रह्यो जी,ढीली मूकी वा ॥१॥ नविक तुं पुण्यतणुं फल जोय ॥ पुण्यें प गल पोतें हुवे जी, जिहां तिहां संपत्ति होय॥न॥ श्वथकी नृप उतयो जी, पाणी पायो ताम॥
मुसतो थयो जी, वन देखे चिहुं पास ॥ ॥ ज० ॥३॥ नरपति तरुबाया जई जी, बेगे चिंते एम ॥ किहां श्राव्यो जाशुं किहां जी, त्राण उगरशे केम ॥ ज० ॥४॥ श्म मनमांहे विचारतां जी, ना री एक अनूप ॥ श्रावी पासें नृपनें जी,श्रत यौ वन रूप ॥॥॥ मन न चले तेहनुं चले जी, मा रे नयन त्रिशूल ॥ एक नारीने आंबली जी, नरने मे ले धूल ॥ ॥ ६॥ रमजम करती सुंदरी जी, दी ठी नयण वरंत ॥ कामातुर नृपनें कहे जी,सांजल तुं गुणवंत ॥ ज० ॥ ७ ॥ हुँ पाताल निवासिनी जी, दे वी नागकुमार ॥ मोही तुजने देखी ने जी, तुं मन्मथ अवतार ॥ ॥॥ ए वन मुज रमवा तणुं जी, नीतम अनुमति पामि ॥ रमं सदा हां वीने
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( ७ )
जी, ए सुखनुं बे गम ॥ ज० ॥ ए ॥ सुरी कहे मुक शुं रमो जी, व्यो यौवननो लाह ॥ मुक्ति जोडी बे म ली जी, मिटे हीयानो दाह ॥ ज० ॥ १० ॥ तुज मुज पूरव लेखथी जी, यावी मल्यो ए योग ॥ तो हवे किशी विचारणा जी, जोगवो मुजशुं जोग ॥ ॥ ॥ ११ ॥ मानव जव पामी करी जी, व्यो लाहो गु वंत || अवसर नहीं श्रवशे जी, पूरो मननी खं त ॥ ज० ॥ १२ ॥ आव्यानें आदर दीये जी, मूके न ही निराश | उत्तम नर पीडे नही जी, पूरे सहुनी श्र श ॥ ज० ॥ १३ ॥ वारं वार करूं विनति जी, ढील न खमणी जाय ॥ कामव्यथा महारी मिटे जी, मेलो यो महाराय ॥ ज० ॥ १४ ॥ घणुं कहावो बो की स्युं जी, मानो मुज अरदास ॥ ढाल त्रीजी पूरी य जी, करो जिनहर्ष विलास ॥०॥१५॥ सर्वगाथा ॥ ५७ ॥ ॥ दोहा ॥
क
॥ तुं नमरो हुं मालती, फूली यौवन बाग ॥ रस ले रसीया साहेबा, तुं मलीयो मुज जाग ॥ १ ॥ क ह्युं करीश जो माहरू, तो तुज़नें वर देश ॥ नहीं तो रूठी तुज जणी, श्हां ऊनां मारेश ॥ २ ॥ रूठी इं यति आकरी, तूठी शीतल जाए ॥ अंत न लीजें
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(७) तीनो कीजें वन प्रमाण ॥३॥राची अमृत सारि खीविरंची विषनी वेल ॥एवं जाणी सापुरुष, मन के रोह मेल ॥४॥तुजशुमाहारे मन मत्यु,लागेनिविड सनेह ॥ सुख जोगवो संसारनां,नावे अवसर एह॥५॥ ॥ ढाल चोथी॥ मम कारो माया रे का
या कारिमी ॥ ए देशी ॥ ॥राय कहे रे देवी सांजलो, मूकी दे एहवी रूढि रे॥ हंतो नररूप तुंतो देवता,ए किसी योग्यता मूढ
राय ॥॥ तुं देवी ने देवनी योगता, मानवी मानव योग रे॥सरिखे सरि जोडुंजो मले,तो बदेले म संयोग रे ॥रागा॥ देवी मुजने नियम बे एहवो, माय बहिन पारकी नार रे॥ पारकी नारी केम ढुं जो गईं, सांजली दोष अपार रे ॥रा ॥३॥रावण प रनी रे स्त्रीय लंपटी, लश् गयो रामनी नार रे ॥रामें लंका विध्वंसी करी, उद्यां दश शिर धार रे ॥रा ॥॥नारी पांच पांमवनी जौपदी, शीलवती शिरदार
। कीचक तेह तणो रसीयो थयो, नीमे हण्यो ते णि वार रे ॥रा॥५॥ ज थहिल्यायें ते मोहियो, मौतम दीध सराप रे ॥ सहन नीचिन्ह सरिखां थ मां..पाम्यो बहुत संताप रे ॥राण ॥६॥ तणी
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अपबरा चूकव्यो, तपथी ब्रह्मा ततकालं रे ॥ मुख कस्यां मोहवशें चिडंदिशें, जोवा रूपं सकुमाल रे। ॥रा ॥७॥ एम घणेरां रे लोक परनारीश्री, पाम्या फुःख जव एण रे॥ परजवें पण ते घणुं रडवड्या,ल ही वली फुःखनी श्रेणि रे ॥रा॥ ॥ हुं केम ता हरी वातें चातलं, मेरु चले केम वाय रे ॥ अग्नि वर से कदा नहिं चंप्रमा, अग्नि ताढो नवि थाय रे ॥ ॥रा ॥ए ॥ समुष मर्यादा मूके नहीं, शेष धूने न ही शीश रे॥ गंगाजल मलीन थाये नही, रहे अंध कार केम दीस रे ॥ रा॥ १० ॥ तेम मन माहार ते पण नवि मगे,वचन रचना सुणी तुकारे॥अन्याय मारग केम हुं संचलं, अगड नांगु केम मुजा रे ॥ ॥ रा॥ ११ ॥ राजा पीयर डे परजा तणो, राय प्र जा रखवाल रे ॥राय अन्याय करे नहीं कदा, म कर तुं वचननी पाल रे ॥रा ॥१॥ तुं मुजने ले जामिणी सारिखी, एहवां वचन म बोल रे ॥ढाल जिनहर्ष ए चोथी थई, नृप कह्यां वचनं अमोल रे॥ ॥रा० ॥ १३ ॥ सर्वगाथा ॥ ५ ॥
॥दोहा॥ ॥श्म सांजली रूठी सुरी,क्रोध करी असरान।
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(१०) दृढ बंधनशुं बांधीयो, पीड्यो तेणें नूपाल ॥१॥ना रि वचन नानां सुण्यां,श्रावी नागकुमार ॥ तूगे राय जणी कहे, धन धन तुज अवतार ॥२॥ सत्यवंत तुं सापुरुष, शीलवंत गुणवंत ॥धीरज ताहारी देखीने, पाम्यो हर्ष अनंत ॥३॥ मात पिता धन्य ताहरां, जेहनें तुं थयो पुत्र ॥श्हां तोतादरी कीरति, पामीश सुख श्रमित्ताधाएहवू कहीने रायनां,बंधन बोड्यांदे वै॥ कर जोडी कहेवीनति, वचन निसुण तुं हेव॥५॥ ॥ ढाल पांचमी ॥ देखो गति दैवनी रे॥ ए देशी॥
माग वर देवता श्म कहे जी, तूगे हुं तुज गु ण देख ॥ तुज सरिखो जग को नहीं जी, मूकी तें देवि उवेख ॥ मागण॥१॥ नरपति लांखे मारां की स्युं जी, सांजल नागकुमार ॥ माहरे नही ऊऍरति किसीजी, राज कि जया नंमार ॥माग ॥२॥ देव कहे सुण देवनुं जी, दरशन निःफल न होय ॥ तेह जणी काश्क माग तुं जी, मुफ तुं प्रीतज जोय ॥ माग० ॥३॥ प्रीत तिहां अंतर किस्युं जी,अंतर प्रीति विनाश।तो अंतर किम राखीयें जी,जोश्ये मागे सज पासमाग०॥ ४॥ याग्रह जाणी सुरनो तदा
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(११) जी, श्रापे तो मुज सुत श्राप ॥ माहरे एटयुं काम डे जी, चिंता मुज तणी काप ॥ माग ॥ ५ ॥ जा षा समजे सहु जीवनी जी, यो वरदान मुफ एह ॥ देवें वर दी, राजा जणी जी, राखीयो एटलो नेह ॥ ॥ माग ॥ ६॥ पुत्र होशे ताहारे सही जी, लेहशे जाषातणो नेद ॥ पण कदेशो जो किण श्रागलें जी, जीवितनो होशे बेद ॥ माग ॥ ७॥ श्म वर दोय देश गयो जी, नारी लेश निज लार ॥ आनंद मनमांहे उपनो जी, राय मनहर्ष अपार ॥ माग ॥ ७॥ त रुवर बांहडी वीशम्यो जी,मालो तेणे वृदनी माल ॥ रहे तिणमां बे चडो चडकली जी, वात करे सुकुमाल ॥ माग ॥ ए ॥ पंखीयो कहे सुण पंखणीजी, तुं रहे श्रापणे गम ॥ मत किहां जाये यहां थकीजी, हुँ जाउं बुं किण काम ॥ माग ॥१०॥प्रीतम सु ण कहे चडकली जी, श्रावीश ताहरे साथ ॥ एकल डी हुँ केणिपरें रहुं जी,जाये केम रात्रि विण नाथ ॥ ॥ माग ॥ ११॥ पुरुष श्छा तणा राजीया जी, न वलीशुं करे नेह ॥ मूलगी नारी वीसारी देजी, पु
ह ॥ माग० ॥ १२ ॥ हृदय जू यो मुखना जूश्रा जी,पुरुषनो किशो विश्वास ॥ ति
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(१२) मे तुज केडे हुं श्रावणुंजी, नारी शोने पियुपास ॥ ॥ मागण॥ १३ ॥ एकली नारी केम मूकीयें जी, प्री तम हृदय विमास ॥ ढाल जिनहर्ष यशपांचमी जी, वचन सुणे नृप तास ॥ माग ॥ १४ ॥सर्व ए॥
॥दोहा॥ ॥ चिडो कहे रे चडकली, वहेलोही आवेश॥तुं कहे ते फोकट कहे, मन शंका नाणेश ॥ १॥ हर बेश रही चडकली, चडो कहे मत संताप ॥ गौ स्त्री बालक ब्रह्मनु, नायूँ तो मुज पाप ॥२॥ माथु धू पी चडकली, कहे किशा सम एह ॥ पुरुष हैये खो टा हूए, तुरत देखाडे बेह ॥ ३॥ पुरुष वचन मार्नु नहीं, पुरुष कपटनां गेह ॥ जिम तिम करी नारी जणी, तरी जाये जेह ॥४॥ नारी अबला नर सबल, नरनां हैयां कगेर ॥ न गणे लजा लोकनी, करता कर्म अघोर ॥५॥ ॥ ढाल बही ॥ सुण बेहेनी पीयुडो
परदेशी ॥ए देशी॥ ॥ एतो मीठी वाणी चडकलो, जोखे वाहाली मोरी नारी रे॥ पंखणी कहुं तुजने ॥ नर नारी स सिा नथी, बोलीजें वचन विचारी रे ॥ १॥
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(१३) निर्लङ नारी साजे नाही, . ये पुरष तणे शिरदोष रे॥ पं० ॥ अनरथा सेवे पोते सदा, वली थर बेसे निर्दोष रे ॥५०॥॥ नारी मांहे बक्षण नही, वसी नाणे केहनी नीति ॥५०॥जेम मन माने तेम संचरे, गमे कुलकेरी रीति रे ॥ पं०॥३॥ निजखा रथ जो पहोचे नहिं जरतार हणे तो नार रे ॥६॥ बार ऊपरशुं लीपणुं, नारीनो नही विचार रे ॥५॥ ॥४॥ एतो नारी क्यारी कूडनी, कपट तणो जंमार रे ॥६॥ तें कहेवराव्याने में कह्या, रीश में करीश तुं नार रे ॥५०॥५॥ कोठी धोयां कीच ड नीसरे, नारीशु केहो वाद रे ॥ ५० ॥ वाद कर तां वेढ थाये घणी, तिलमांहे किश्यो सवाद रे॥६॥ ॥६॥ हवे किमही जावादे मुजनें, पंखणी कहे सां नल कंत रे ॥ ५० ॥ रयणी जोजन पाप ग्रहेजो, तो जावा युं गुणवंत रे ॥ ५० ॥ ७ ॥ कान ढांकी क हे पंखीयो, एतो सम न करूं मोरी नार रे ॥६॥ ए तो पातक नवि ऊपडे, एनो तो सबलो नार रे॥ ॥५०॥॥ नही जश्य ए कारज रघु, राजा सांज लीयो आप रे ॥ पं०॥ रात्रियोजननुं पंखीयां, ते प ण जाले नहीं पाप रे ॥ पं0 ए॥ सांजली पंखी
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(१४) ना बोलडा, नृप मन यो संदेह रे ॥ पं०॥ पूढुं हुँ केहनें जार, कोण संशय नांगे एह रे ॥ पं० ॥ ॥ १७॥ एम चिंतवी घोडे चडी, जोवे कानन मन रंग रे ॥ ५० ॥ साधु लता तरुमंग, देखी हैयडे जबरंग रे॥.पं० ॥११॥ तुरत अश्वथी ऊतरी श्रावी,प्रणम्या मुनिना पाय रे ॥६॥धर्माशीष दीधी रायने, बेगे पागल चित्त लाय रे ॥५०॥ १५ ॥ कर जोडी विनय करी घणो, कहो करुणावंत कृपाल रे॥ पं०॥रात्रिनोजननो केटलो, दोष दाखो दीन दयाल रे ॥ पं० ॥ १३ ॥ नरराय सुणो मुनिवर क हे, केम दोष अशेष कहेवाय रे ॥५०॥ थाये आयु बरस असंख्यन, सो रसना सो मुख थाय रे ॥६॥ ॥१४॥ कहेतां थाय पूरा नही, रात्रिनोजननां पाप रे ॥ पं॥ ढाल बही ए पूरी थर, जिनहर्ष कहे मुनि श्राप रे ॥५०॥ १५॥ सर्वगाथा ॥ ११४ ॥
॥दोहा॥ ॥ पण महोटा अवगुण कहुँ, सांजल तुं धर्मिष्ठ । नई नवलगें जीवनी, घात करे पापिष्ट ॥१॥पातक पाये जेटद्यु, एक सर शोषंतांह ॥ एकशो एकनवशो पके, ते एक दव देतांह ॥२॥होत्तरसो नवलगें,
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(१५) दव दे पापी कोय॥एक कुवाणिज्य जो करे,पाप तेटयु होय॥३॥ पूज्य कुवाणिज्य स्यो कहो, जेहनां एटलां पाप ॥ते संजलावो मुज नणी,टालो मननो ताप॥३॥ ॥ ढाल सातमी ॥ महाविदेहक्षेत्र सोहा
मणुं ॥ ए देशी॥ ॥ मुनिवर कहे तुमें सांजलो,लाख मीण मधु लो य राय रे॥घाणी मुशल हल गामलां, गली महडांशु मोह राय रे॥ मुनि ॥१॥ विष हथियार न वेच णा, वज्रदंत वचनाग राय रे॥ बलद समारी वेचवा, बली वेचे लश् बाग राय रे ॥ मुनि ॥२॥ ढेढ क साश्वाघरी,तेली ने लोहार राय रे॥वणजारा अधो वाहिया, चीडीमार मलिमार राय रे ॥ मुनि॥३॥ जव चुमालीश एकशो,पाप कुवाणिज्य जेह राय रे॥ खोटुं एक कलंक ये, तेटर्बु पाप गणेह राय रे ॥ ॥ मुनि ॥॥ जनम एकावन एकशो, थाल तणो जे दोष राय रे ॥ एक परस्त्री संगते, थाये पातक पो प राय रे ॥ मुनिणाय॥ नवाणुं शो नवलगें, परस्त्री कामे कोय राय रे ॥ एक रात्रिनोजन तणुं, एटतुं पातक होय राय रे ॥ मुनि ॥६॥ वायस सूकर कू कडो, घूअड ने मांजार राय रे॥ निशिजोजने पासे
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सही, रात्रिचर अवतार राय रे ॥ मुनि ॥७॥मु निपासें राजा सुणी, निशिजोजनना दोष राय रे ॥ चरणे लागी प्रेमशु,धरतो मन संतोष राय रे॥मुनि॥ ॥ ॥ एक रात्रिनोजन तणो, दोष अडे मुनिराय राय रे ॥ तो केम बूटीश तेहथी, को उपाय बताय राय रे ॥ मुनि ॥॥ पूर्वे निशिनोजन कस्या, ते तो नूस्या अज्ञान राय रे ॥ हवे जाणीने परिहरो,ध रो धर्मनुं ध्यान राय रे ॥ मुनि ॥ १०॥ अमरसेन राजा करे, रात्रिनोजननो नीम राय रे ॥ मुजने नि श्चल पालक, नां जीवं तां सीम राय रे ॥ मुनि॥ ॥ ११ ॥ वली पूब अणगारने, स्वामी कहो विचार राय रे ॥ चिडा चिडकली केम लहे, रात्रि दोषअपा र राय रे ॥ मुनि ॥१॥ एणे वनमांहे मुनि कहे, समवसख्या जिनराय राय रे॥ कुंथुजिनेसर सत्तरमा, तास नणी नमी पाय राय रे ॥ मुनि ॥ १३॥ नि शिजोजमनो में पूजीयो, स्वामी लांखो दोष राय रे॥ जिनवाणी समजे सहु, सहुने होय संतोष राय रे ॥ ॥ मुनि ॥ १४ ॥ जिन कहेतां पंखी सुण्यो, बेग तककर माल राय रे ॥ ए जिनहर्ष पूरी अश, एटले सातमी हाल राय रे ।मुनिमार५॥ सर्वगाथा ॥१३३॥
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(१७)
॥दोहा॥ ॥ ते पण पाले श्राखडी, सांजल तु नूपाल ॥ध न्य पंखी ते बापडा, दोष तज्यो ततकाल ॥१॥ नृप पूजे कर जोडीने, चिडा चिडी अवतार ॥ किहां देशे
हांथी मरी, मुजने कहो विचार ॥२॥ मुनि जांखे ते पंखीयो, तुज सुत होशे विचार ॥ चीडी जीव तुज पुत्रनी, थाशे निरुपम नार ॥३॥ श्म संशय नृप मन तणो, टाल्यो सदु मुर्णिद ॥ मनमांहे हर्षित थ यो, पारयो परमानंद ॥४॥ अश्व इत्यो राजा न पी, ते। तथी परधान । चतुरंग सेना ले करी, चा ब्यो बुद्धि निधान॥५॥पगे पगेघोडा तणे,श्रावी सेना त्यांह ॥ चरणे लागा श्रावीने, राजा बेगे ज्यांह॥६॥
॥ ढाल बाठमी ॥ वीडीयानी देशी॥ ॥ सेना श्रीगुरु चरणे नमि, राय प्रणमी गुरु ता य रे॥श्राव्यो निजमंदिर हर्षशु, पुरलोक जणी सुख थाय रे ॥ सेना॥१॥ सुत वात कही राणी श्रा गो, हरषी मनमांहे विशेष रे॥प्रीतम मखिया सुख कपर्नु, वली पुत्रनूं सुख लहेश रे ॥ सेना ॥२॥ दो प.सत्रिनोजनना दाखव्या, गुरुमुख सांजलीया जेह
॥ राज सोकमांहे ते टासीया, शूरवीर नृपति गुण
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(१०) गेह रे ॥ सेना ॥३॥ सुख जोगवतां श्म अन्य दा, निशि सुपन लडं श्रीकार रे॥शणगास्यो विजय थंज निरखियो, राणी हरषी तेणी वार रे॥ सेना ॥ ॥॥ रायने राणीयें जश् वीनव्यो, थाशे कुल थंज स मान रे ॥ मनमां निश्चय तुं जाणजे, एणीपरें नांखे राजान रे ॥ सेना ॥५॥ जिम जिम ते सुत गर्ने वधे, तिमतिम वाधेनृपराज रे॥ जींपे सीमाडो राज वी, जय पाम्यो वाधी लाज रे ॥ सेना ॥६॥ य गय सेना घाधी घणी, पुरदेश वध्या जंमार रे॥ श्म पूरे दिवसें जनमीयो, कुलमंगण राजकुमार रे ॥ सेना ॥ ७॥ उत्सव बहु परें राजा कियो,कहेतां न श्रावे पार रे ॥ चंदन तोरण करी बांधीयां, शण गास्यां पुर बाजार रे ॥ सेना ॥ ॥ दश दिवस ल में उत्सव करी, सुतक दिवसें ग्यार रे॥पक्वान्न नो जन जात नातनां, नीपजाव्यां तास न पार रे ॥ से ना०॥॥ जमाव्या पुरजन मानशं, जमाव्योव ली परिवार रे ॥ कीधी सहुनें परेरामणी, संतोष्या संह नर नार रे ॥ सेना॥ २७॥ सहु सांजलजोरा जा कहे, सुपंना केरे अनुसार रे ॥ जयवाद लह्योस
मेनामें जयसेनकुमार रे॥सेना ॥९॥
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(१५) गुण रूप कला तेज निर्मलो, नीलेष्टफोही पे जिम् नाण रे ॥ सुरकुमर सरिखो फूटरो, प्रंगटी जाणे. णखाण रे ॥ सेना॥१२॥ वालो लागे सहु लोकनें, पुण्यवंत हुवे जे बाल रे॥जिनहर्ष पुण्यथी पामीयें, संपूर्ण श्राठमी ढाल रे॥ सेना ॥ १३ ॥
॥ दोहा॥ ॥ एक दिवस उत्संगमां, सुत लही बेगे तात ॥ सहेजें पंखीनी कही, पूरवजवनी वात॥१॥सांजली मूळ पामीयो, नोंयें पड्यो ततकाल ॥ लोचन मी चाई गयां, चित्त रहित थयो बाल ॥२॥ आकुल व्या कुल नृप थयो, राणी करे विलाप ॥ खमा खमा सह को कहे, वाय वींजे नृप थाप ॥३॥ पाणी वलमां ऊगीयो, कुमर थयो सावचेत ॥ राय कहे सुत शुं थयु, थयो अचेत कुण देत ॥४॥ वात तुमें कहेतां सुणी, पंखीनी में तात ॥ में दीगे जव पाब्लो,तेणे थ एहवी वात ॥५॥ सर्वगाथा ॥ १५७॥
॥ ढाल नवमी ॥ अलबेलानी देशी ॥ ॥रात्रि जोजननो हवे रे लाल, पाप जाणी तेणें बा लाहितकारी रे ॥ कीधी मनशुं श्राखडी रे लाल, रा ज्यकुमर सुकुमाल ॥१॥ हितकारी रे, रात्रिनोजन
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(२०) नो हवे रे लाल ॥ ए आंकणी ॥ पांच धावें पालीज तां रे लाल, करतां कोडि जतन ॥हि॥थयो वरस ते सातनो रे लाल, दीपे जेम रतन्न हि॥राशा नमें नीशालें पाग्यो रे लाल, करवा कला अभ्यास ॥हि॥ थोडे दिवसें श्रावडी रेलाल, कला बहोंतेर तास ॥ हि ॥ रा ॥३॥ कुमर प्रवीण थयो घणुं रे लाल, विनयवंत गुणवंत ॥ हि ॥ यौवनवन तन महोरीयो रे लाल, शोजा जास अनंत ॥ हि ॥रा॥ ॥४॥ हवे सुणो केणी परें मले रे लाल, पूरवनवनी नार ॥ हि॥श्रीजयसेन कुमारने रे साल,सांजलजो अधिकार ॥ हि ॥रा॥५॥ वदेश रलियामणो रे लाल, सरसो जिहां सुनिद॥ हि ॥नगरी तिहां कमलापुरी रे लाल, कमलापुरी प्रत्यक्ष ॥हिारा॥ ॥६॥ धनवंत तिहां व्यवहारीया रे लाल, सुखीया ने सुकुमाल ॥ हि॥ लोक वसे तिहां सहु सुखी रे लाल, पुःखीयाना प्रतिपाल ॥ हि ॥ रा॥७॥ राज्य करे राजा तिहां रेखाल,बलिन महाबलवंत ॥ हि तेजजासन शहीसके रेलाल,अरिगिरि गुफा प्रहंताहिणारागाजापट्टराणी गुणसुंदरीरेलाल, गुण अवर जिणमाय ॥ हि ॥प्रीतमनें वहाली घणी रे
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(१) खाल,एक जीव दोय काय ॥हिणाराणाए। रूपवंती ने पतिव्रता रे लाल, निर्मल शील धरंत ॥हिणा विनय वंती मुख मलकती रे लाल,पुण्य नारी मिवंत ॥ ॥ हि ॥रा० ॥ १० ॥ जयसेना कुंअरी तसु रेला ल, सुरकन्या अवतार ॥ हि ॥ यौवन पुरुष मन मोहनी रे लाल, गुणनो नहिं को पार ॥हिाराणा ॥११॥ चतुर विचक्षण सुंदरी रे लाल, चोशठकला जमार ॥हि॥ गजगति चाले गेलशुं रे लाल,रूप दी धुं किरतार ॥ हि॥रा॥१२॥ नीपावी निजहा यशुं रे लाल, ब्रह्मायें करीय यतन्न ॥ हि ॥ एहवी कन्या फूटरी रे लाल, अवर न केही अन्न ॥हि॥ ॥रा ॥ १३ ॥ सखीवर्गमाहे रमे रे लाल, निशि दिन मन उरंग ॥ हि ॥ कहे जिवहर्ष पूरी थ रे लाल, नवमी ढाल सुरंग ॥ हि ॥रा ॥१४॥
॥दोहा॥ ॥ चिडाचिडी एकण दिने, तरुवर केरी माल ही चंतां दीग तेणे, मनमां चिंते बाल ॥१॥किहां एक में दीगढूंतां, पंखी करतां केल ॥माले रमतां हिंच तां, चिडा चिडी मनमेल ॥२॥ उहापोह करतां पडी, थअचेत तेणिवार ॥ सांजरियो जव पाउलो, चिंते
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२२) चित्त मजार ॥३॥ पहेले नव हुं चडकली, चिडो मु ज जरतार ॥ निशिजोजन मूक्युं हतुं, नृपघर लीयो अवतार ॥४॥ पुण्य फल्युं ते मुज हां, सुखणी थश्थ पार ॥ परणुं जो मुजनो मले, पूरवनव जरतार ॥५॥
॥ ढाल दशमी ॥ साहेबा मोतीडो
- हमारो ॥ ए देशी ॥ ॥चित्त विचारे केम ते मलशे, केम मनोरथ मा हरा फलशे ॥ कुमरी जरीयो मन चिंते, कुमरी जरी यो ॥ए आंकणी॥चिंता मग्न थश्ते कुमरी,फूल विना रति नहिं जेम नमरी ॥ कु०॥१॥ अन्न न नावे नी र न नावे, राग रंग श्रवणें न सुहावे ॥ कु०॥ निज सहियर साथे नवि खेले, रात दिवस नीसासा मेले ॥ कु०॥२॥.वरस बराबर वासर जाये, तारा गण तां रात विहाय ॥ कु०॥शून्य ध्यान बेठी मन घ्या वे, किनही\ निज चित्त न लावे ॥ कु० ॥३॥ वर चिंता हैयडामां धरती,रहे उदास दिवस एम नरती॥ ॥कु॥ तोडे तृण नूमि सामुंजोवे,न जणावे हियडा मां रोवे ॥॥॥पूडे सहीयर सांजल बहेनी, म्लान मुख दीसे केम कहेनी॥॥चिंतामननी कोने न ज णावे, फुःख मन- तुं कां न जणावे ॥॥५॥प्रीति
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(२३) साची जो चित्त दाखे, अंतर श्रमशु केहोराखे॥०॥ चिंता अग्नि चिता जेम बाले, चिंता सुंदर काया गाले॥ ॥ कु०॥६॥चिंता बानी मार कहीजें, एहनो किम ही न नेद लहीजें ॥कु० ॥ कंचनवर्णी काया गाली, थाये सांजल तुं सुकुमाली ॥ कु०॥७॥ सखी सुणो तुम पागल नांखू, तुमशु केहो ? अंतर राखुं ॥ कु०॥ पूरवनव में दीगे सहेली, पंखी देखी थर हुं घेली ॥ कु० ॥ ॥ पूर्वजवनो परणुं नरतार, बीजाशुं तो मुज न विचार ॥ कु॥ राजा बीजा वरने देशे, तो कहोने सखि केम करीशे ॥ कु० ॥ ए॥ श्रारति म नमांहे तेणे सबली, मननी मनमां रहेशे सघली ॥ ॥ कु० ॥ सखीयो कोश् उपाय बतावो, दीजें उत्तर ता त सुहावो ॥ कु० ॥ १० ॥ जयसेना बार अवधारो, चिंता म करो थाशे सारो॥ कु०॥ कोश्क बहेनी प्र पंच करीजें, कालविलंबें फल पामीजें ॥ कु० ॥११॥ किशो प्रपंच मुने संजलावो, थाये कार्य सिद्धिबतावो ॥ कु० ॥ करो प्रतिज्ञा कोश्क महोटी, सखी कहे मत जाणो खोटी ॥ कु०॥ १२ ॥ किसी प्रतिज्ञा क रुं सहेली, दाखो मुजने हवे वहेली ॥ कु० ॥ सखी
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() कहे करो चारे विशमी, ए जिनहर्ष ढाल कही दस मी ॥ कु० ॥१३॥ सर्वगाथा ॥ १५॥
॥दोहा॥ ॥ जयसेना नांखे सही, बहेनी प्रतिज्ञा दाख ॥ तुज बोले जव पाउलो, पहेली ए हिज लांख ॥१॥रू प अदृश्य करे वली, द्वितीय प्रतिझा एह॥त्रीजी म होटे हय चडी, मंगप श्रावे जेह ॥२॥ चोथी का चा सूत्रनें, हिंचे हीमोले जेह ॥ चारे प्रतिज्ञा पूरवी, वर वरवो ते तेह ॥ ३ ॥ जली जली तें बुद्धि कही,ए हथी थाशे सिहि ॥ जयसेनाहरषी कहे, जली बुद्धि तें दीध॥कुमरीरलीयायत थक्ष, सुमती सखीनी जो ३॥ हवे बीजो नर मुजजणी, परणी न शके कोश॥५॥ ॥ ढाल अग्यारमी॥कुंता माता एम जणे॥ए देशी॥
॥एकदिन दीठी हो कुंअरी,रायें यौवन माती। परणावी नहिं एहनें, हूंतो थयो ब्रह्मघाती रे॥एक॥ ॥१॥सांनल महेंता हो मुज सुता, महोटी थश्य अ पारो रे ॥ सरखी जोडी हो जोश्ने, परणाईं जरतारो रे ॥ एक ॥२॥ नां तुमनें खयंवरा, मंगप राय मंमावो रे ॥ देश सहुना हो राजवी, मूकी दूत तेडावो रे ॥ एक० ॥३॥ परणे कुमरी हो जोश्ने, मन मा
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२५) ने बर तेही रे॥दोष न आवे हो तुम शिरे,सहुशुंथा य सनेहो रे ॥ एक० ॥॥ वात सुणावी हो ते न दी, महेंता मुज मन मानी रे ॥ चारे बुद्धि तुज नि मली, तुंतो गुणवंत ज्ञानी रे ॥ एक० ॥५॥ दूत द शो दिश पाठवी, राय सहुने तेडावे रे॥राय सहु दे शदेशना, श्रागंबरझुं आवे रे ॥ एक० ॥६॥ गुर्जर शोर पूरवी,मालव मरहठ स्वामी रे॥ कुंकण ला ट करणाटना, मेदपाट नहिं खामी रे ॥एक॥७॥ घोड चोड सवा लाखना,नोट वैराट कांबोजीरे॥देश कुणाल पांचालना,कोशल अधिपति मोजी रे॥एका जावंग कलिंग वखाणीये, जंगल अंग तिलंगा रे ॥मगध सिंध सिंहलपति, प्राविड दसारण रंगी रे॥ ॥एक ॥ ए॥ोण चीण हरमज धणी, मरुमंगल कुरुदेशी रे॥इत्यादिक देश देशना, स्वदेशीने परदे शी रे ॥ एक ॥१॥ श्राव्या निज परिवारशुं, पुत्र पुत्रा संजोडीरे॥ कहे जिनहर्ष अग्यारमी, ढाल जली परें जोडी रे ॥ एक ॥१॥ सर्वगाथा ॥ २०५॥
॥दोहा॥ ॥वदेश तिहां श्रावीयो, नगर धारापुर दूत ॥ सनामांहे ऊनो रह्यो, अमरसेन पुर हुँत ॥१॥ बलि
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(२६) जब नृप कमलापुरी,स्वयंवर मंगप ज्यांह ॥ पुत्रीना मंगप अड़े राज्य पधारो त्यांह ॥२॥ अमरसेन जय सेनशुं, चाव्या सैन्य संघात ॥ अविछिन्न प्रयाणशें, श्राव्या पुर थर वात ॥३॥ राजा बहु नेला थया, बलिन नूप तिवार ॥ पुरपरिसर उतारीया, अवल हवेली सार ॥॥ जक्ति करे राजा घणी, राजवीयांनी जोर ॥ जे जे जोश्ये ते सहु, आपे करीने होर ॥५॥ ॥ ढाल बारमी ॥ बींदलीनी देशी ॥ मांकड
मूगलो ॥ ए देशी ॥ ॥ निज मेरे राय राणा, करे केली सहु सपराणा हो॥अचरिज वात सुणो, वात सुणो हवे आगें, सांजलतां मीठी लागे हो॥॥॥जयसेन कुमर नीसरीयो, रमवा वनमा संचरीयो हो ॥०॥ एक वृक्ष नीकुंजमां श्रायो, धरतो मन हर्ष सवायो हो ॥श्रण ॥॥ बेगे दीठो संन्यासी, वींव्यो तन चर्म विलासी हो ॥१०॥ आंखडीयां तो गश् ऊमी, ते पण दीसंती ग्रॅमी हो ॥ ॥३॥ मुख वांकुं वांकी नासा, लडबडता होठ तमासा हो॥श्रण ॥ दांत तो गजदंत समाणा, पग बोटा साथल घाणा हो ॥॥ ॥४॥ कान महोटा माथु महोटुं,कोढ रोग शरीर
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(२७) बोटुं हो ॥ १०॥ एहवे रूपें ध्यान ते साध, सामर ख्यो जयसेन समाधे हो ॥१०॥५॥ पूर्व चोपजामी ने कुमार, एहवो श्यो ए श्राकार हो॥अ॥ स्वा मी ए मुजने कहिये, मनमांहे अचरिज लहीयें हो ॥ १० ॥६॥ वाणी सुणी एहवी योगी, फरी चर्म ते उढ्यो रोगी हो ॥१०॥ थयो रूप अदृश्य तेवा रें, नृपसुत मनमांहे विचारे हो ॥ अ० ॥७॥ श्रच रिज मुफ चित्त उपायो, संन्यासी किहां सिधायो हो ॥०॥ बेगे तेणे गमन दीसे, इंग्रजाल जंजाल जगीशे हो ॥ अ० ॥॥ वली चर्म मूक्यो तेणे दूरे, जाणे तेज देखाड्युं सूरें हो ॥ अ० ॥ कंचन सम दीपे काया, पद्मासन ध्यान लगाया हो ॥ अ० ॥ ॥ए ॥ पूजे नृपसुत हितकामी, शुं कीg ए तें खा मी हो ॥ अ ॥ हुँ सिझ अबु ते बोले, ए चर्मने कोश् न तोले हो॥ ॥१॥ तुजने ए ख्याल देखा ड्यो, तुज चित्त संदेहें पाड्यो हो ॥१०॥ हुए रू प कुरूप उढेथी, थाये अदृशीकरण शुन तेथी हो ॥ ॥११॥ होवे सहज रूप मेलंतां, एम होये रमतां खेलंतां हो ॥ अ०॥ ए जाति चर्मनी एहवी, तुज श्रागल कही हती जेहवी हो ॥ अ० ॥ १२ ॥
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(२०) चर्मनो मर्म सांजलीयो, प्रणाम करीने वलीयो हो ॥ १० ॥ जिनहर्ष ढाल थई बारे, नृप सुत श्राव्यो ऊतारे हो ॥ अ० ॥ १३ ॥ सर्वगाथा ॥ २२३॥
॥दोहा॥ ॥ वली रमवा केरे मिशें, कुमर श्राव्यो वनमा हे ॥ तेणे गमे देखे तिसें, अग्नि कुंग उत्साहे ॥१॥ पावक दारुशुं पूरीयो, जालो जाल विकराल ॥ शी को एक तांतण करी, बांध्यो तरुवर माल ॥२॥ कु मर सिक पासें रह्यो, जोवे तेह अचंन ॥ जोगीने पू ने प्रनो,मांम्यो श्यो आरंज ॥३॥ सिक कहे विद्या जणी, अठोत्तर शो वार ॥ नर बेसी शीके श्णे, साह स धरीय अपार ॥४॥ विद्या आकाशगामिनी, ऊ मे नर आकाश ॥ जो तूटे ते तांतणो, तो खेचरगति तास ॥५॥ जो तूटे नहिं तांतणो, तो तंतुसिक क हाय ॥कुमर नणी योगी कडं, पायें लाग्यो धाय॥६॥ ॥ ढाल तेरमी ॥ सुण सुण वालहा ॥ ए देशी ॥
॥पली सदा तांतण तणी रे, खाट हिंमोले रे जोय ॥ सांकल सम होये बेसतां रे, तंतु सिह एम होय रे ॥१॥ पुण्य सदा फले ॥ परनवें लाहो थाय रे, पुण्ये सहुमले ॥अणचिंत्यांफल पाय रे ॥ पुण्य० ॥
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(ए) ॥२॥बीदेतो कुममां पडे रे, बीहे नहिंतो रे सि हि ॥ विद्या श्राकाशगामिनी रे, बेहुमांहे एकनी वृद्धि रे ॥ पु० ॥३॥ योगी कहे शीको कस्यो रे,जो डी सामग्री रे एह ॥मंत्रतणुं पद वीसह्यं रे, काम न थाये सिकरे ॥ पु०॥४॥ कुमर कहे योगी जणी रे, विद्या जणी देखाड ॥ पदानुसारिणी मुज श्र रे, जोडं अक्षरमाल रे ॥ पु० ॥५॥ खोट काढुं विद्या तणी रे, लांगु ताहारी रे चिंत ॥ कारज सिम थाये सही रे, मंत्र जणो गुणवंत रे॥पु०॥६॥ परज पगारी तुं सही रे, मुजने मलियो रे मित्र ॥ विद्या प द पूरण करी रे, टालो मननी चिंत रे ॥ पु० ॥७॥ मंत्र सुणाव्यो कुमरने रे, पद पूस्युं ततकाल ॥ सिक पुरुष हो हीये रे, बोले वचन रसाल रे ॥ पु०॥ ॥ज चर्म अपूरव तुज नणी रे, आपुं ले तुं एह ॥ उपगारे उपगारडोरे, करीयें तो वधे नेहो रे॥ पु०॥ ॥ ए॥ विद्या पण शहां साध तुं रे,सिहि होशे तुज वीर॥वचनखरूं तुंमानजे रे, तुंडे साहसधीर रे॥ ॥ पु० ॥१॥ पहेलो तो साधो तुमें रे, सामग्री से योग ॥ तुम केडे हुं साधशुं रे, देई मन उपयोग रे॥ ॥ पु० ॥ ११॥ योगी कहे मुज साधता रे, तांतण
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(३०) बेटे रे जेह ॥ ते तुं पागे सांधजे रे, विद्या सिद्धि हो शे एह रे ॥ पु० ॥ १२ ॥ शीख देश श्म कुमरने रे, शींके बेगे रे सिझ ॥ तांतण बेटा ते सहु रे, खेचर विद्या लीध रे ॥ पु० ॥ १३ ॥ आकाशे ऊडी गयो रे, सिद्धपुरुष ततकाल ॥ए जिनहर्ष पूरी थई रे, ए टले तेरमी ढाल रे ॥ पु० ॥१४॥ सर्वगाथा॥२४३॥
॥दोहा॥ ॥ कुमर हवे साहस धरी, साधी तेणें ते वार ॥ शींके बेगे ततहणे, त्रूटो नहीथ लगार ॥१॥ तंत्र सिक हूठ सही, मंत्र प्रमाणे ताम ॥ पण आकाशें उ ड्यो नहिं, तेतो न थयुं काम ॥२॥ तंत्र सिक तो हुँ थयो, ए हिज मुज प्रमाण ॥ चर्म लेहीने आवीयो, पो ताने अहिंगण ॥३॥ चर्म रतन साध्यु तिहां, मेरा मांहे कुमार ॥ निचिंतपणे सूई रह्यो, जाग्यो राय ते वार ॥४॥ सीयाल सांजल्यो बोलतो, सुर नर समजी वाच ॥ चित्त विमासे एहवं, प्रथम थर साच ॥५॥ ॥ढाल चौदमीतुंगियागिरि शिखरसोहे॥ए देशी॥
॥ सांजली नृपशीयाल नाषा, कहे माहोमांहि रे॥ टलवले नर एक पडीयो, जद करीयें जारे॥सां॥ ॥१॥राय एवां वचन सांजली, दया श्रावी ताम
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(३१)
रे ॥
रे ॥ जीवताने एह खाशे, होशे मातुं काम रे ॥ सां० ॥ ॥ २ ॥ जागव्यो निजकुमरने नृप, कहे एम वचन्न करे बे कंद कोइ नर, दुःखें पीड्यो तन्न रे ॥ सां० ॥ ३ ॥ शीयाल तेहनें न करशे, तास ज इ मेलाव रे ॥ करो जइ उपकार पुत्ता, ऊठ वार म लाव रे ॥ सां० ॥ ४ ॥ कुमर ऊठ्यो दया प्राणी, ता त वचन प्रमाण रे ॥ विनयवंत सुपुत्र थाये, ते न लो पे आप रे ॥ सां० ॥ ५ ॥ खड्ग लेइ तुरत चाल्यो, लवे जिए दिशि श्यायाल रे || शूरनां ते शूर थाये, कि शुं महोटा बाल रे ॥ सां० ॥ ६ ॥ श्रवीयो जिहां प ड्यो माणस, टलवले तस पिंक रे ॥ वात सरजी कि मे न टले, कोण जांजे जीड रे ॥ सां० ॥ ७ ॥ तेहनें बोलावीयो तुं, कोण बे नर बोल रे ॥ केम पडीयो खा
मांहे, लह्यो दुःख निटोल रे ॥ सां० ॥ ८ ॥ बोली शके नहिं बापडो ते, हैये श्राव्यो जार रे ॥ ताम क समसतो पर्यपे, छातुं हुं कुंजार रे ॥ सां० ॥ ए ॥ जो गीतणी हुं करूं सेवा, नमुं तेहना पाय रे ॥ माहरे घ रे यई लखमी, तेहने सुपसाय रे ॥ सां० ॥ १० ॥ एक दिन मुज घरें व्यो, तेह जोगी आप रे ॥ चरणे नमी बेसाडीयो में, गयां माहरां पाप रे ॥ सां०॥ १.१ ॥
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(३२) पात्र पूलुं तेहन में, जक्तिशुं परमान्न रे॥थ संतुष्ट ने पूरी आसन, दीधुं नोजन मान रे॥सांग ॥१॥ सुण प्रजापति एक तुजनें, दीयुं विद्या सार रे । लोक ने आश्चर्यकारी, लहे मान अपार रे॥सांग ॥१३॥ अश्वमाटीनो करीने, तावडे सूकाय रे॥ अमिमांहे पचावी मंत्र, चालतो ते थाय रे ॥ सांग ॥ १४ ॥ में तो असवार थाजे, घालजे अथ नार रे॥चौदमी जिनहर्ष परी, थई ढाल विचार रे ॥ सांग ॥ १५ ॥
॥दोहा॥ ॥ मंत्र शीखाव्यो मुज जणी, तेणे जोगी ततका ख॥महारो मन हर्षित थयो, कीधो एणे उपकार हय कीधो माटी तणो, मंत्रबलें ततकाल । हेपारक करतो थको, चालंतो मबराल ॥२॥महिमा वाघ्यो माहरो, देशांतर थयुं नाम ॥ मंत्र गयो मुज वीसरी, केटले दिवसें ताम ॥३॥जोगी सिकाचल गयो, के डें गयो हुँ तास ॥ फेरी मंत्र खरोकीयो,पूगी महा री श्राश॥४॥ पगे लागी पाडो क्ल्यो, खागा मुज षट मास ॥ कालें श्राव्यो हुं श्ण पुरी, धरतो मन उ
हास ॥५॥राजानी परणे सुता, श्राव्या घणा न रिंद ॥ कला देखाड़े एहने, अश्व करी धानंद ॥६॥
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(३३) ॥ ढाल पन्नरमी ॥ श्मर आंबा आंबली रे,
मर दाडिम जाख ॥ ए देशी ॥ ॥माटी. खणवा ऊठीयो हो जी, जाजी लेई रात॥ आणी अश्व नरी करी होही, वलीश्राव्यो परजात ॥१॥ सुगुणनर, सांजल महारी वात ॥ लोनें फुःख प्राणी लदे होजी,थाये आतमघात॥सुपए आंकणी॥ खणतां खाण तूटी पड़ी होजी,हुँ चंपाणो हेगगाकेड लां गी वेदन थर होजी, फोकट कीधी वेठ ॥सु॥शाह वे हुँ जीवं नहिं होजी, लागो मर्म प्रहार॥तुं श्राव्यो उःख कापवा होजी, धन्य धन्य तुज अवतार ॥सु॥ ॥३॥ मंत्रा ' ले तुज नणी होजी, अश्वकरण उप कार ॥ मंत्र शीखाव्यो कुमरने होजी, प्राण तज्यां कुं जार ॥ सु० ॥४॥ निरखी जाल पावक तणी होजी, एशुं दीसे आग ॥ रायसुत पासें गयो होजी, ताणी ले गयो जाग ॥ सु॥ ५॥ अश्व पचंतो निरखीयो होजी, शीतल करीग्रही होत॥मन विकस्यो तन उब स्यो होजी, जाणे अमृत पीत ॥ सु० ॥ ६॥ शांतें आव्यो बाहरें होजी, तात जणी कहे आय ॥ घात अश्ते नर तणी होजी, खाणे प्राण नसाय ॥ सु० ॥ ॥७॥ बीजं कां कडं नहिं होजी, सुता पिता सुत
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(३४) जाक पोतेपण्य जेहने हुए होजी, तास मले सहु आय ।। सुराणा प्रहदिसि नोबत पूरी होजी, थ यो सफल प्रजात ॥ शणगारी कमलापुरी-होजी, सुर नगरी सादात् ॥ सु० ॥ए ॥ स्वयंवर मंम्प रच्यो होजी, सुंदर सोहे अपार ॥ सिंहासण मंगावीयां हो जी, नृपकानें शणगार ॥ सु० ॥१॥ चोकी मांमी जू जूश हो जी,चंपुथा बांध्या पटकूल ॥ वाड बंधावी रे शमी होजी, सुंथाली अकतूल ॥ सु० ॥ ११ ॥ कृ ष्णागरुना धूपणा होजी, महकी रह्या चिहुं उर ॥ कल्या बटकाव गुलाबना होजी, खसबोर वधी जोर ॥ सु० ॥ १२ ॥ राय तेडाव्या मंग हो जी,श्राव्या धरता होंश॥पवन जको विजणे होजी, धन्य वर से जे पुंस ॥सु॥१३॥ बंदीजन बिरुदावलि होजी, मागण मल्या अनेक ॥ ढाल पन्नरमी ए थर होजी, धरी जिनहर्ष विवेक ॥सु॥१४॥ सर्वगाथा ॥२३॥
॥ दोहा॥ ॥ हवे बोली चिंता जरी, कुमरी सहियर संग॥ नृप मुज मन जाणे नहिं, केम रहेशे श्हां रंग॥१॥ श्रारंज मांगयो श्रति घणो, प्रिय विणा सहीयांह ॥ हांसी थाशे लोकमां,कुमरी एम कहीयांह ॥२॥ इम
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(३५) चिंतवतां चित्तमां, फुरक्यु वामुं अंगे मालविकासको हियडो हस्यो,अंग थयो उबरंग ॥३॥ बाई सुप सही यर कहे,मुख दीसंतुं विछाह ॥ हमणां मुख थयु उज धु,दीसे अंग उछाह॥धातुजने वर मलशेशहां,मलीया जूप अनेक॥चार प्रतिज्ञा पूरशे,ते वर वरवो एकाए॥ ॥ ढाल शोलमी ॥ लालदे मात मलार ॥ए देशी॥
सखी कहे विधि लेख, लखीयो जे सुविशेष, श्राज हो श्राघो रे पाडो बहिन टले नही रे जो॥जि णशं अनुबंध, पूरवनव संबंध, आज हो मलशे रे ते श्रावी अणचिंत्यो सही रे जो ॥१॥ एणी परें करतां वात, तेडावी निज मात, आज हो जावो रे बोलावो ख्यावो कुंथरी रे जो॥थाय अवेलो श्राज, पीठी करवा काज,बाज हो आवी रे मन जावी वा ली दीकरी रे जो ॥२॥ पामी राय श्रादेश, हियडे हर्ष विशेष, श्राज हो चंदन रे बावन्ने उगटणुं कीयो रे जोशुचि जल न्हाण कीध, अंगूडो सुप्रसिक,श्रा ज हो मुहूर्त रे सुमुहूर्त वेला आवीयो रे जो॥३॥ अंगें बनाव्या शोल, सूत्र तांतण हिंगोल, आज हो खेरे वरमला मंगप संचरी रे जो॥प्रातिहारिणी साथ, कनकनडी ग्रही हाथ, आज हो जाणे रे सु
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(३६) रपुरथी देवी ऊतरी रे जो॥॥चिंते देखी नूपाल, सुरकन्या सुकुमाल, श्राज हो खेचर रे कन्या के नाग कुमारियां रे जो॥ एहनुरूप अनूप, कयुं न जाये खरूप, आज हो जीती रे एणे त्रिजुवन केरी नारियां रे जो ॥५॥ देखी रंज्या राय, लोयण रह्यां लगा य,आज हो गकी रे आंखडीयां पानी नवि वले रे जो ॥ दीपे दंत रसाल, जाणे मोतीमाल, श्राज हो जाणे रे रवि किरणा सरिखां जलहले रे जो ॥६॥ नयनकमल दल जाण, अणीयालां गुणखाण, आज हो तीखां रे मनमथनां सायक लागणां रे जो ॥ ना क दीवानी धार, चंपकली आकार, आज हो देखी रे रंजित थाये कामी जना रे जो ॥ ७ ॥ अधर प्रवा ली रंग, तेथी अधिक सुरंग, श्राज हो दर्पण रे सा रिखा गलस्थल बन्या रे जो॥गजकुंनस्थल मोज,ए हवा जास उरोज, आज हो पीला रे बाजोरा वरण अवगण्या रे जो ॥७॥ काने शोहे जाल, दीपाव्या जेणे गाल, आज हो खटके रे खीटलीयां जबके फूम णां रे जो ॥ चावंती तंबोल, सहीयांशुं रंगरोल,श्रा ज हो पहेस्यां रे हियडे बाजरण सोहामणां रे जो ॥णा उर कंचूकह ताणि, पहियो कुमरी सुजाण, श्रा
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(३७) ज हो जाणे रे ईश्वर शिर तंबू ताणीयो रे जो॥सोवन चूडलो बांह, जाणे सुरतरु बांह, आज हो बांहे रे बा जुबंध नाग वखाणीयो रे जो ॥१०॥ कनक मुण्डी खंत, अंगुलीयें सोहंत, आज हो सोवन रे अंगुठी अंगूठे बनी रे जो॥कटिमेखल खलकंती, घूघरीयां घ मकंती, आज हो पायें रे जेहर सोवनमय वाजणी रे जो ॥११॥ पहेरी पटोली अंग, उढण चीर सुरं ग, श्राज हो ऊबके रे बाजरणमां जाणे वीजली रे जो ॥ हसती रमती गेल, जाणे मोहनवेल, आज हो पूरी रे थश्शोलमी ढाल जिनहर्ष रली रे जो ॥१॥
॥दोहा॥ ॥ नारी जोवा पासमां, राजहंस ततकाल ॥ दे खी व्यामोहित थया, बंधाणा ततकाल ॥ पागंतरे॥ (पुरुष पडे जेम माउलो, ज्यारें खूटेकाल)॥१॥ रे जगदीश किशा जणी, तें उपजावी नार॥ण नारी नर जोलव्या, नूला नमे संसार ॥२॥णे नारी जग मोहीयु, हाव नाव देखाड ॥ पोताने वश सहु किया, मनमृग बंधण जाल.॥३॥ जेहने घरे ए कामिनी, थाशे ते धन्य धन्य ॥ बीजा फोकट अवत स्या, पशुवश जेम रतन्न ॥ ४ ॥ जेहने श्रापशे ए
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(३०) प्रिया, तेहशुं ताहरे प्रीति ॥ बीजाशुं तुज रूसणो, एह किसी तुज रीति ॥ ५॥ सर्वगाथा ॥ ३७५ ॥ ॥ ढाल सत्तरमी ॥ बे कर जोडी ताम रे, नसावी नवेए देशी॥अथवा,जंबडीपमकार,पुरहथिणार ॥ए देशी॥ अथवा,पामी सुगुरु पसाय रे ॥ए देशी॥
॥ लखीयो जेह निलाड,तेहिज पामीयें, होंश कीजें केही घणी ए ॥ देखी परायां लाड, हीयडा हुरकडो, फोकट करे किस्या नणी ए॥१॥जेणे दीधुं बेदान, पुण्य कस्यां घणां॥ते लेहेशे ए कामिनी ए॥वरसेतो नर एक, पण सहुनां मन, कस्या चंचल गजगामिनी ए॥॥रूडा तणी रुंहाड, मन कीजें नहीं, फोकट मन विणसाडीयें ए॥ विधि लखियो संबंध, मरशे तेहनें, चित्तथी सत्य केम गंमीयें ए॥३॥ राजा करे वि चार, तृपति न जोवतां, पामे न मन चूनी रह्यो ए ॥प्रातिहारिणी ताम, सहुनें उलखे, नाम ले ले कह्यो ए ॥४॥ चांदो ए चाण, महोटो राजवी, ए सहसो सीसोडीयो ए॥ए पालण परमार, हयगय रिकि घणी,जगमांहे एणे जस लीयो ए॥५॥ परव तजी पडिहार, परवत जेहवो, अरि खीसवीयो न वि खसे ए॥ रणसिंह ए रागेड, महोटो गढपति,
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(३ए) प्रजा सहु सुखणी ससे ए॥६॥ शोलंकी नृप चंअसेन, सेना परिगल, नांजे पण जांगे नहिं ए ॥ मरहको महिपाल, महीयल राखणो, ख्याति जगतमांदे लही ए॥ ७॥ शंखराय सुविदित, न्याते सांखलो, एहनें घेर नारी घणी ए॥ सिंहलवांको राय, श्रीधर राजवी,ए महोटा गढनो धणी ए॥॥सबल सिंह महा राय, सोलंकी साखें, जेहने दल संख्या नहिं ए ॥ जादव नृप जयपाल, पाले लोकनें, कीर्ति जेहनी महमही ए ॥ए॥ गंगाधर गहिलोत, गंगाजल जि स्यो, जस जेहनो के निर्मलो ए ॥ जालो जांजण सिंह, चतुर विचरण, कला बहोंतेर आगलो ए ॥ ॥१॥ विगतालो वणवीर, महिमा जेहनो, वाघेला मांहे दीपतो ए॥ हामो राव हमीर, देवराज देवडो, अरियणर्नु बल कीपतो ए ॥१९॥ सगरराय सेलोत, सहदेव सोनगरो,अमरसेन ए आदडो ए॥ ए वन देश शणगार, जयसेन तसु सुत, धीरवीर वर वांक डो ए ॥ १५ ॥ राजवीयांनां नाम, कहे बिरुदाव ली, कुमरी मन माने नही ए॥ ढाल सत्तरमी एह, नर नारी सणो, रूडी जिनहर्षे कही ए॥ १३ ॥
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(४०)
॥दोहा॥ ॥शाने समजावे सखी, चार प्रतिज्ञा दाख ॥ स घला नरपति सांजले, नली परें तुं नाख ॥ १॥ स खी सहुको सांजलो,मलिया बहु नूपाल ॥ चार प्रति झा पूरशे, ते ग्रहेशे वरमाल ॥२॥ माटी तुरंग च लावशे, कदेशे पूरव जम्म ॥ तांतण हींचोलें हिंचशे, रूप फेरवशे तिम्म ॥३॥ एहवं सांजली राजवी, थ या वदन विद्याय ॥ एक एकनें एम कहे, एतो किमे न थाय ॥ ४॥ एता बोलावी नृपति, शुं कीg एणे राय॥मान महोत सहु निर्गम्यो,बेटीने शीखाय ॥५॥ ॥ ढाल अढारमी ॥ तुंगीया गिरि शिखर
सोहे ॥ ए देशी ॥ ॥ वयण सुणी हरख्यो हीये,तव जयसेन कुमार रे॥ ए कला मुजमां अने, पूरीश प्रतिज्ञा चारो रे ॥व य० ॥१॥ तुरत कुमर ऊठी करी, उढ्यो उलटो च म रे॥ रूप फरी गयो मूलगो,कोश न जाणे मर्म रे॥ वय ॥२॥ माटीने घोडे चडी, श्राव्यो वयंवर ग म रे॥ सना सहु देखी करी, अचरिज पामे ताम रे ॥व०॥३॥ हाथ गल्या पग पण गल्या, बाहेर दांत नीकलीया लांबो पेट कूया जिस्यो, केश माथानां
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(४१) पलीयां रे ॥ व॥४॥ काया तो रोगें नरी,वांसें तो पुगंध रे ॥ वांसें रुधिर वहे घj, बोले वचन निबंध रे॥व०॥५॥ एहवू रूप बनावीयुं, माटी तणे तुरं ग रे॥ थर असवार फरे तिहां,मंग धरी उबरंगरे ॥ व०॥६॥ कौतुक मनमां ऊपजे, केडे लोक उजा य रे ॥ तुरत घोडाथी ऊतरी, हींचोले हींचाय रे ॥ व०॥७॥बेटे नहिं एक तांतणो, लोह सांकल सम जाणो रे॥लोक कहे तुज नामशें, धूंबड नाम पीला यो रे ॥व०॥॥ हिंचोले केम हींचीयो, पूरवनव नी ढालो रे ॥ चिडो चडकली अमें हुतां, हिंच्यां दूं बहु कालो रे॥ व०॥ ए॥ कुमरी वयण सुणी करी, पामी सघलो नेदो रे ॥ पूरवनवनो पति मुज सखी, मलीयो घणे उमेदो रे॥१॥ सखी कहे एहने वस्यां, चडशे सुकुल कलंको रे॥ यौवन जीवन विणसशे, ह सशे लोक निःशंको रे ॥ व०॥११॥ ए वर नहिं तु ज योग्यता, निसुणी वचन कुमारी रे॥जे निज बोल पाले नही, तेतो बे नवहारी रे ॥ व॥ १२॥ माहा रीप्रतिज्ञा पालगुं,वचन गमुं केम आलो रे ॥ वरमा ला—बड गलें,घाली तेणे ततकालो रे ॥व० ॥१३॥ को नरीया राजवी, स्वयंवर एणे बिगाड्यो रे॥मा
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( ४२ )
रो कुमरी बापनें, सघलो काम ऊजाड्यो रे ॥ व ॥ ॥ १४ ॥ दोष किस्यो कहो बापनो, कुमरी थइ छाजा यो रे ॥ ढाल थइ ए अढारमी, सुपो जिनदर्ष सु जाणो रे ॥ ० ॥ १५ ॥ सर्वगाथा ॥ ३४८ ॥ ॥ दोहा ॥
॥ कहे सहु एम राजवी, धूंबड माला मूक ॥ प्राणे पण बेशुं छामें, जीवयकी मत चूक ॥ १ ॥ बोले धूंबड बल करी, जलें जलें हो राय ॥ जाण्या ह ता बे पायना, पण दीसो बो चउपाय ॥२॥ बोलो बो चूका थका, एवो करो बो न्याय | आवी वर माला तजे, ते मूरख कहेवाय ॥ ३ ॥ प्राणे में लीधी नयी, खुशी थईने एह ॥ घाली तो मुज शिरसटे, ब्यो
क होय जेह ॥ ४ ॥ एवी मतिसारु तुमें, केम पालो बोराज ॥ वात इसी करतां थकां नावे तुम नें लाज ॥ ५ ॥ होठ से रीशें जरया, ए धुंबड कुण मात्र ॥ बोले हवो करो, करो घात ए वात ॥ ६ ॥ कुपो रूप बोले कह्यो, मारण उठ्या दास ॥ घोडो चांप्यो सामहो, नाठा पामी त्रास ॥ ७ ॥
॥ ढाल उगणीशमी ॥ कडखानी देशी ॥ ॥ मानना गाडला सैन्यना लाडला, क्रोध जरी
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( ४३ ) या हिया जोध धाया ॥ मारी ब्यो जाली ब्यो बांधी यो धूंबडी, एम कदेतां नराधीश श्राया ॥ मान० ॥ ॥ १ ॥ गयवर गाजता सूंढ ऊलालता चालता प ता टूक दीसे ॥ धूतां शीश सुर ईसरा सारिखा, चपल तेजी घणा वीचें हींसे ॥ मा० ॥ २ ॥ हुइ असवार तरवार ढालां ग्रहे, धनुषधर तीर तूणीर जरीया ॥ कुंत विजूला उज्ज्वला सारना, धारना ति क्षण निज दब धरीया ॥ मा० ॥ ३ ॥ याव रे धूं बडा कूबडा सामहों, नासजे मत हवे त्रास पामी ॥ ताहरा हाथनो बल हवे जाणस्यां, आणस्यां ताहरे वंश खामी ॥ मा० ॥ ४ ॥ कां रे मरे तुं खूट्या विण बापडा, नाख वरमाल के काल रूठो ॥ एकलो केक लो जोर फोरे किश्यो, जलधि संग्राम तुं लोट मू वो ॥ मा० ॥ ५॥ कायरां नरां किस्युं घणा हुवां शुं ययुं, तुल जिम वायरे ऊडी जाशो ॥ माहरा हाथ चारथमां कुण सहे, जीति मन रीति जे रीत जा शो ॥ मा० ॥ ६ ॥ वचन सुणी कुमरनां आकरा कांकरा, ऊठीया मारवा सदु समेला ॥ मरी कुंजार तेणी वार व्यंतर दुर्ज, आवीयो ताम संग्राम वेला ॥ मा० ॥ ७ ॥ देवनी शक्ति घरी जक्ति निज शिष्यनी,
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(४४) कटक घट सुलट तव मेली श्राव्यो॥जीर कुंअर त णी होश मनमें घणी, राखवा सुत यमदूत लाव्यो॥ मा० ॥ ॥ ऊमरा धूमरा धूमरा जाणजे, लोहना बाण सींगण चडावे ॥नाल गोला वहे वेरीयोने द हे, क्रोध जरीया हीयामां न मावे ॥ माम् ॥ ए॥ मुहरि करि गजघट पटा जरता प्रबल, चालता जाणे उंचा हिमाला ॥ जाडता सूंढशुं शुंग ज्युं श्र रिगजा, पायदल\ लडे नीडे पाला ॥ मा० ॥१॥ कूदता नाचता अश्व गयणे चडे, त्रापडे बापडे न हीय कोई॥चढे योधार खड्गधार\ आहणे, घाव ए कणथी बे टूक होई ॥ मा० ॥ ११ ॥ कारिमा यो धना हाथना घावशें,साथरा हुआ धड शीश जूनां ॥ रक्तना खाल बंबाल नदीयां वही, चिंतव्या पयचरा तेण हुआ ॥ मा० ॥ १५ ॥ सुनट घायें घणा घू मता उमता, कटकनी भाकरी हूंक वाजे ॥ राखवा ख्याति दात्री दत्रवट तणी,नाशि जश्य तो हवे वंश लाजे ॥ मा० ॥ १३ ॥ घाव सामे अडे आथडे केश पडे, पारडे ज्यांह निज जीव वाहा ॥ सेरीयां केश नासेश् वांसे पड्या, मारतां गल हूश्रा सुंढाला ॥ मा० ॥१४॥ कटक व्यंतरतणे पाहण्या अरि घणा,
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(४५) आपणा शिष्यनी जीत कीधी ॥ वाजीयां तूर नीसाण घूयां घणां, अमरने मावडे ख्याति लीधी ॥ मा० ॥ ॥१५॥लाज वाधी घणी जगत धूंबड तणी, बोल श्र रियां तणो हर्ज मागे॥ए थ ढाल जिनहर्ष उंगणीश मी, नासतां शिर चड्यो कृष्ण चागे ॥मा॥१६॥
॥दोहा॥ ॥ व्यंतर तास सखाश्यो, कुमर लह्यो जसवाद ॥ अचरिज सहुनें ऊपनो, एकण कस्यो उन्माद ॥१॥ बूंबड तो एकलो हुतो,कटक थयो परगट्ट ॥ दीगे न हिं केणे श्रावतो, जातो नहीं पण दी ॥२॥ एतो कोश्क देवता, के विद्याधर को॥के कोश्क योगी बे, जांखा नरपति हो ॥३॥ राज देशना मूत्रा घ णा, एनो न मूड को॥ अमरसेन मनमां श्स्यो, खेद करंतो जोश ॥४॥ ततःण कुमर कायाथकी, चर्म उतास्यो जाम॥जयसेन रूप प्रगट थयुं, हा सहुको ताम ॥५॥ ए विद्या शीख्यो किहां, अहो कुमर वडवीर ॥संग्राम कीधो एटलो, तुं तो साहस धीर ॥६॥ लागो पाये तातनें, खमजो अविनय मु ज॥श्रालिंगन देपूड़ीयो, मली विद्या किहां तुज ॥७॥ कयु वृत्तांत सहु मूलथी, खुसी थयो सुणी
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(४६) ताताहवेसमय विवाहनो,श्राव्यो दिन विख्याताणा ॥ ढाल वीशमी ॥ रघुनाथ मले मो मन
वसीया ॥ ए देशी ॥ ॥ जयसेनकुमर गुहिर गाढो,केसरीया करी हुला डो॥ए आंकणी ॥ बबिजरायें उत्सव मामयो, श णगामु पुर सघली जातें ॥ कुमरी जाग्य पुण्या म हारी, वर मलीयो पूरुं मन नांते ॥ ज० ॥१॥ मं मप रचियो सुर नुवन सरिखो, देखतां थाय उबरंग॥ गयवर चडी वर कुमर पधास्यो, तोरण वांदण जाय निःसंग ॥ ज० ॥२॥ गोखें गोखें जोवे गोरी, गली यें नर जोवे वरराज ॥ पुरमांहे गहमह हुईरह्यो, घू रे नगारां नोबत साज ॥ ज० ॥३॥ रूपें देवकुमर अवतरीयो,आजरणे करी दीपे अंग॥वाघो पहेरी अवल कसबीनो, सूरज ज्योति जगमगे अनंग ॥ ॥ ज० ॥४॥ सासु आवी पुंखीयो वरने, सघलाही कीधा आरंज ॥ लाडो देखी मन हरखी लाडी, बर सुरवर सरिखो हुँ रंज ॥ च० ॥ ५॥ पूरवजवनो नेह नगीनो, बानो न रहे व्यापे मोह ॥ खेंचीले मन हियडे पेसी, आकर्षी जेम चमक लोह ॥ज॥ दिशा शोले तन शणगार बनाया, सुर कन्या सरखी
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(४७) जेह ॥ श्रावी चोरीमांहे बेठी, वर पण बेगेसुंदर दे ह ॥ ज० ॥ ॥ गावे धवल मंगल मली गोरी,ब्रा ह्मण करे वेद उच्चार ॥ फेस्या पावक वेदी दोला, वर कन्याने फेरा चार ॥ ज० ॥७॥ हाथ मेलाव्या वर कन्यानां, कारण सहु कीधां लौकिक ॥ चारे मंग ल वरत्या चोरी, लाडो लाडी रह्या नजीक ॥ ज०॥ ॥ ए॥ कर मेलावण रायें दीधो, हय गय कंचन अडु राज ॥ मांहो मांहे रह्यो रस जाजो, परणी जव्या सीधां काज ॥ ज० ॥ १०॥ राजवीयां नां मन रीजाणां, परिगल मीग करी पक्वान्न ॥ जली युक्तिशुं जान जिमार, देश् यान घणुं सन्मा न ॥ ज० ॥ ११॥ जानी सघलाही गहगह्या, राज वीयांने दीधी शीख ॥ खुशीथई सहुको घर चाख्यां, वेवाही बे रह्या सरीख ॥ ॥१॥ सासु देखी जमा
हरखे, करे नक्ति दिन दिन नवि रीति ॥ढाल थ ई.वीशमी ए पूरी, गा जिनहर्ष सोहेलें गीत ॥ ज०॥ १३ ॥ सर्वगाथा ॥३ए॥
Hom१३॥
स
दोहा॥
नप एम
॥श्रमरसेन राजा जणी,कहे बलिन नृप एम ॥ हां रहो पिन केटला, तुमशुंडे बहुप्रेम ॥॥श्रम
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( ४ )
रह्यां न पूरवे, सूनो केडे राज ॥ शूनुं राज न मू कीयें, कयारेक विणसे काज ॥ २ ॥ राये घणुं कहे वरावियं, पण न रहे श्रमरसेन ॥ सातेहि जो न वि रहो, तो राखो जयसेन || ३ || आग्रह करी राख्यो कुमर, सासु ससरे ताम ॥ जगतावि बोलावीयो, री मननी हाम ॥ ४ ॥ वाली थाये दीकरी, वर प वालो तास ॥ सह सो सो वानां करे, क्षण मेले नहिं पास ॥ ५ ॥
पू
॥ ढाल एकवीशमी ॥ रुषन जिनेसर प्रीतम ॥ माहरो रे ॥ ए देशी ॥
॥केली करे कुमरी रे जयसेन कुमरशुं रे, दिन दिन नवलो रंग ॥ दिन दिन वधती रे प्रीति परस्परें रे, दिन दिन ति उबरंग || के० ॥ १॥ कुमरी जाणो रे वर पाम्यो जलो रे, पूरव पुण्य संयोग ॥ नृपसुत मोह्यो रे कुमरी रूपशुं रे, जोगवे सुख संजोग ॥ ० ॥ ॥२॥रमे केइ वारें रे वाडी बागमां रे, वापी नीर मकार ॥ कुंम जरावे रे केशर नीरशुं रे, कोले मली निजना र ॥ ० ॥ ३ ॥ मीठे बोले रे वाणी सीमंतिनी रे, रंजे प्रीतम चित्त ॥ क्षण एक पण रे दूर रहे नही रे, पारेवा जेम प्रीत || के० ॥ ४ ॥ एक दिन पूढे रे
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(४) वसर पामीने रे, जयसेना घर नारी ॥ मननी चिंतेरे प्रतिज्ञा दोहेली रे, केणीपरें पूरी चार ॥ के० ॥५॥ सहु तिणे कर्वा रे वृत्तांत ते वनतणुं रे, पूरव जवनी वात॥तेतो में जाणी रे बालपणाथकी रे, सांजली कहेतां तात ॥ के० ॥६॥ एहतुं सुणीने रे चिंते का मिनी रे, विधि सन्मुख जब होय ॥ चिंतित त्यारें रे सहु श्रावी मले रे, कारण अवर न कोय ॥कुणा॥ श्म सहु श्छा रे पूरे मन तणी रे, सुरनी परें सुकु माल ॥काल गमावे रे राग रंगमां सदा रे, बंधाणां प्रे मजाल ॥के॥॥॥ सुख लपटाणां रे जातां जाणेन ही रे,रात दिवस सुखमांहि ॥ निज चतुराईयें रेप्री तम वश कियो रे,मनमां सदा उत्साहि ॥ के० ॥॥ एकदिन नांखे रे कुमर राजा जणी रे, अमें हवे चाल णहार ॥ अनुमति आपो रे अमने करी मया रे, म लगावो हवे वार ॥ के ॥१॥ दिवस घणेरा रे श्हां रहेतां थया रे, हवे जश्य निजगेह ॥ मिलणो माहरे रेमातपिता जणी रे, जाग्यो बहु परें नेह ॥ के० ॥ ११॥ माय बाप महारी रे वाट जोतां ह शे रे, तेहनी पूरूं खंत ॥ ढाल थई रे ए एकवीश मी रे, थाये जिनहर्ष निचिंत ॥ के० ॥ १२ ॥
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(५०)
॥ दोहा॥ ॥सांजली वचन कुमारना,हैयुं जराणुं ताम ॥ बलि जज बोली नवि शके,संजारी गुणग्राम ॥१॥प्रीति ज मा ताहरी, हियडे बेठी श्रा॥ किमही नीसरशे नही, एतो साल समाश्॥२॥ मन ऊपाड्युं शहां थकी,अमने करी नीराश ॥ जाशो केम करशुं अमें, खारा होय आवास ॥३॥ अमनें वीसरशो नही, ख रीलगाइप्रीत ॥ जोजन करवा अवसरें, वाला श्रा वे चित्त ॥४॥ तुमने शुं कहीये घj, कहेवानो व्य वहार॥सीधावोने सिझ करो,धरजो प्रीति अपार॥५॥ ॥ ढाल बावीशमी ॥ आज निहेजो रे दीसे
नाहलो ॥ ए देशी ॥ ॥ करे सजा रे कुमर ते चालवा, बलिना राजा रे ताम ॥ हय गय सेजवाला रथ पालखी, किंकर करवा रे काम ॥ करे ॥ १॥ श्राप्या घरेणां रे वाघा न व नवा, कन्याने पण सार ॥ बहुपरें प्या रे वेश घणा घणा, आप्या सह शणगार ॥ करे० ॥२॥ कीयो जुहार जमायें जश् करी, सासुने तेणी वार ॥ दीधी फरी आशीष सोहामणी, नयणे आंसु धार॥ ॥करे॥३॥ मेलो देजो रे वहेला आवीने, तुमें डोजी
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(५१) व समान॥ क्यारें अमने रे वीसरशो नही, जेम नू ख्याने रे धान्य ॥ करे ॥४॥ अमने पण अवस रें संजारजो, लखजो कागल पत्र ॥ ॥ सेंगु साथे रे कुशल कहावजो, कुशखें पहोंचो रे तत्र ॥ करे ॥ ५॥ हियडे जीडी रे बेटीने कहे, करजे सहुनी रे लाज ॥ विनय करजे सासु ससरा तणो, न करे कांश अकाज ॥ करे ॥६॥ कुलवट रीतें चालीजें दीक री, न करे मध्यम संग॥उत्तमनी संगति तुं श्रादरे, पियुशं राखेरे रंग ॥ करे॥७॥अधिको उबो रेजो प्रीतम कहे, तोपण म करे रे रीश॥ किणही वातें रे नाह म दुहवे, धरजे आणा रे शीश ॥ करे ॥॥ मन वच काया रेशील म खंमजे, शोना शील शरी र ॥ श्रावे तेहने रे मागे ते आपजे, परनर गणजे रे वीर ॥ केरे ॥ ए ॥ तुकारे किणने म बोलावजे, बो लावे जीकार ॥ शोना लेजे रे सहुमांहे घणी, मुंइंजे म धरजे रे नार ॥ करे ॥ १० ॥ राजलीलासुख सं पत्तिपामीनें,म करे मन अहंकार॥धर्मध्यान सूधो मन श्रादरे, करजे दुःखित सार ॥ क० ॥ ११ ॥ तुज घ रें श्रावे साधु महाव्रती, देजे अढलक दान ॥ लाहो बेजे रे पामी श्राथनो,म करीश देती रे मान ॥क॥
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(५३) ॥ १५॥ शीख किसी दीजें सुपुरुषनें, तुं चतुर सुजा ण ॥ पूरी ढाल थर बावीशमी, सुणो जिनहर्ष सुजा ण ॥ कम् ॥ १३ ॥ सर्वगाथा ॥ १५ ॥
॥दोहा॥ ॥शीख इसी सुणी रायनी, मसि कुमरी माय ताय ॥ चाली पीयुशुं सासरे, साथें सैन्य समुदाय ॥१॥ चर्मरतन मृन्मय तुरी, बेई कुमर सुजाण ॥ तिहाथी चाख्यो हित करी, करतो अखंम प्रयाण ॥२॥ अनुक्रमें धारापुरवरें, आव्यो जाणी राय॥ पेसारो कीधो घणो, नम्या तातना पाय ॥३॥ चरण नम्यां माता तणां, वहू सासुने पाय ॥ लागी विनय विवेकह्यु, श्रावी सहुने दाय ॥४॥ वहूयें सहुने मोहीयां, जाणे मोहनवेश ॥ देखीने लोयण ठरे, चाले गजगति गेल ॥५॥
॥ ढाल त्रेवीशमी ॥ निर्णय नगर सोहामणुं ॥वणजारा रे ॥ ए देशी ॥ ॥ अमरसेन अमरेशशुं पुण्य जोवो रे ॥ पाले राज्य अखंग हो पुण्य जोवो रे ॥ तेज वधे दिनदिन घणो पु०॥ नरेनूमियां दंग हो पु॥१॥ मांहोमांहे हित घणुं पु० ॥ पिता पुत्र एक जीव हो पुण्॥ ताव
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( ५३ )
सोपे नहिं पु० ॥ वाह्यो विनय छातीव हो ० ॥ २ ॥ त्रष्य वर्ग साधे सदा पु० ॥ जाणे अधि को धर्म हो पु० ॥ अर्थ काम धर्मविए नहिं पु० ॥ धर्म की शिवशर्म हो पु० ॥ ३ ॥ जीवदया पाले सदु पु० ॥ न करे जीवनी घात हो पु० ॥ मृषा वचन बोले नही पु०॥ श्रदत्त तणी नही वात हो पु० ॥४॥ परदारा सेवे नही पु०॥ करे सहुने उपकार हो पु०॥ अन्याय मारग टालीयो पु० ॥ दीजें शत्रुकार हो पु० ॥ ५ ॥ उत्तम आचारें चले पु० ॥ परजाने सुख कार हो पु० ॥ पाप पुण्य जाणे सह पु० ॥ जीवा जीव विचार हो पु० ॥६॥ निशिजोजन न करे कदा पु० ॥ जाणी दोष पार हो पु० ॥ सात क्षेत्रे धन वावरे पु० ॥ पण न करे अहंकार हो पु० ॥ ७ ॥ कुलवट रीत न चातरे पु०॥ कूड कपट परिहार हो पु०॥ पाले श्रज्ञा जिनतणी पु०॥ जरे सुकृत सुकृत नंगार हो पु० ॥ ८ ॥ कुमर अधिक थयो जावथी पु० ॥ धर्मी धर्म विचार हो पु०॥ किपहीनें दूहवे नही पु०॥ क्षत्री कुल शणगार हो पु० ॥ ॥ पुण्यपसायें जोगवे घुं० ॥ विषय तथा सुखजोग हो पु०॥ तीव्र परिणाम न जेहना पु०॥ जाणे दुःख संयोग हो पु० ॥ १० ॥
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(५४) कुमर राय इणी परें रहे पुण॥ सुखमांहे निशि दीस हो पु॥ कहे जिनहर्ष पूरी थर पु॥ ढाल एह त्रेवीश हो पु० ॥ ११ ॥ सर्व गाथा ॥ ४३१॥
॥दोहा॥ . ॥ण अवसर उद्यानमां, समवसत्या शषि राय॥ सूरि गुणाकर चूंरि गुणा, पाले जे षट्काय ॥१॥ र्या नाषा एषणा, पारिछावणीयादाण ॥ पांच समिति पाले सदा, त्रण गुप्ति सुपहाण ॥२॥ बारे नेदें तप करे, सहे परीसह अंग॥ जीत्या चार कषाय जिणे, धारे रथ शीलंग ॥३॥ पंच प्रमाद करे नही, जे उर्ग ति दातार ॥चार संसार वधारणा,क्रोधादिक परिहा र ॥ ४ ॥ गुण बत्रीश बिराजता, पाले पंचाचार ॥ नविक जीवनें तारवा, मुनिवर करे विहार ॥५॥ ॥ ढाल चोवीशमी ॥ कर्मपरीक्षा करण कु
मर चल्यो रे ॥ए देशी॥ ॥सरु आव्या रे राय सणी करीरे, हरख्यो चित्त मकार ॥सैन्य संघातें रे वांदण चालीयो रे, सा थे पुर नर नार ॥ स ॥१॥ विधिशू राजा रे गुरु चरणे नम्यो रे, धर्माशीष गुरु दीध ॥ विनय करीने रे बेग श्रागडे रे, धर्मोपदेश ध्वनि कीध ॥स॥॥
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(५५) नवियण जावो रे मनमांहे तुमें रे,एह अनित्य शरी र॥वार न लागे रे एहने विणसतां रे, जेम पंपोटो नीर ॥ स० ॥३॥ इंसनाथी रे पाव्या देवता रे, जोवा रूप अपार ॥ एक पलक रे मांहे विणसीगयो रे, चक्री सनतकुमार ॥ स ॥४॥ शकिबोडीने रे राजन नीसस्यो रे,न करे काया सार ॥ एहने पोषी रे न थर आपणी रे, दीधो मोह उतार ॥ स ॥५॥ तेणे ए काया रे जाणी अशासती रे, न धस्यो मोह लगार ॥ तेम तुमें जाणो रे काया कारमी रे, पडतां न लागे वार ॥ स ॥६॥ विचव विचारो रे चपला सारिखो रे, राख्यो न रहे एह ॥ यतन करंतां रे जा ये हाथथी रे, जेम निगुणानो रे नेह ॥ स ॥७॥ नेली कीधी रे कपट करि घणां रे, करि करी बहु था रंज॥राय ले जाय रे चोर पलेवणुं रे, जोवो एह अ चंन ॥ स ॥॥ दिन दिन आवे रे नेडो बाऊखो रे, गणियामांहे घटत॥ एकदिन आवी रे जम लश् जायशे रे, राखी न को शकंत ॥ स ॥॥ मृगप ति जाये रे जेम मृगनें ग्रही रे, तेम लेश्जाशे ए का ल॥ मात पितादिरे राखी नवि शके रे, साथें न को अंतकाल ॥ स ॥१॥ एक दिन मर रेडे स
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(५६) हुनें सही रे, कोण राजा कोण रंक ॥ एह जाणी रे धर्मसंग्रह करो रे,जिहां लगें दूर आतंक ॥सण ॥११॥ जरायें न कीधी रे काया जाजरी रे, तिहां लगें फोरवे प्राणाजरा श्रावशे रे ज्यारें पापिणी रे, घटशे प्राण विन्नाण ॥ स० ॥ १२॥ जरा धूतारी रे एह विध्वंसिर्ण। रे, तप जप किरिया न थाय ॥ पांचे इंछी रे बलहीणां करे रे, लडथडशे निज काय ॥ ॥स० ॥१३॥ धर्म करो रे अवसर पामीने रे, श्रा लस नाणो अंग॥ अवसर चूको रे फरि नहीं श्राव शे रे, जेम नदीयां जल संग ॥ स ॥१४॥ धर्म क रो रे जेम जवजल तरो रे,धर्मथी संपति थाय ॥ध मथी पूगे रे श्राशा मन तणी रे,धर्मे पुरित पलाय ॥स ॥ १५ ॥ धर्मे काया रे निर्मल पामीयें रे, थ मैं जस जयवाद|ढाल चोवीशमी धर्म करो जवि रे, त्यजी जिनहर्ष प्रमाद ॥ स ॥ १६ ॥ इति ॥
॥दोहा॥ ॥ दीधी इणीपरें देशना,धर्मे रंगाणी देह॥ अमर सेन नृप चिंतवे, धन्य धन्य मुनिवर एह ॥१॥ ए मु निवर तारण तरण,धर्म तणा दातार॥ मित्र एह निः खारथी, करे सहुने उपकार ॥२॥ धर्म सुण्यानुं फ
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- (५७) ल किस्यु, जो तजीयन आरंज ॥ गुरुवाणी न रहे हिये, जेम जल काचे कुंज ॥३॥ गुरु वाणी सफ सी करूं, लहुँ हवे संयमनार ॥ जो सांजली नवि श्रा दरं, तो थाये लीपण बार ॥४॥राजकाज कीधां घ णां, कीधां पाप अपार ॥ पाप पखावू श्रापणां, की धो एह विचार ॥५॥श्राचारजनें एम कहे,अमरसे न नरनाथ ॥ राज्य देश निज पुत्रने, व्रत लेगुं तुम पास ॥६॥श्म करी मंदिर आवियो, कुमर नणी देश राज ॥ उत्सवणुं व्रत आदस्यो, अमरसेन शिव काज॥॥तपजप किरिया मुनिधरम,पाली निरतिचार ॥ अंतें अनशन श्रादरी, पहोता मुक्तिमकार ॥७॥ ॥ ढाल पच्चीशमी ॥जरत नृप नावगुं॥ ए देशी ॥
॥श्रीजयसेन राजा हवे ए, न्यायें पाले राज ॥ अन्याय दूरे तजे ए, वाधी जगमां लाज ॥१॥ सदा जय धर्मथी ए॥धर्मे लील विलास,धर्मथी सुख हुवे ए, धर्मथी सफली श्राश ॥ सदा॥२॥जय सेना पटरागिणी ए, वाली जीव समान ॥ सदा सुख जोगवे ए, रागरंग गुणगान ॥ सदा ॥३॥सूत्र तांतणनी पालखी ए, बेसी रमे पुरमांहे ॥ बहु अच रज लहे ए, दिन दिन अधिक उचाहे ॥स॥४॥
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( 45 ) रूप कर अदृश हुवे ए, धर्म तणे परजाव ॥ माटीनें तुरगें चडे ए, नाम थयो सिद्धराव ॥ स० ॥ ५ ॥ किणहीनें नमता नही ए, तेपण लाग्या पाय ॥ जरे दंग रायनें ए, फुर्द्धर पुण्य पसाय ॥ स० ॥ ६ ॥ कुंथु जिणंद पसाउले ए, पाम्या राजजंकार ॥ रतनमय तेनुं ए, बिंब जराव्यं सार ॥ स० ॥ ७ ॥ दयाधर्म पाले सदा ए, पाले जिनवर आण ॥ नमे मुनिजाव शुं ए, पवित्र करे निज प्राण ॥ स० ॥ ८ ॥ इम गृह धर्म पाली करी ए, अणसण लेइ अंत ॥ वैमानिक सुर थयो ए, पुण्यप्रजाव अचिंत ॥ स० ॥ ए ॥ रात्रि जोजन परिहरो ए, सांजली गुरु उपदेश ॥ जाणी दोष बहुपरें ए, पामो सुख सुविशेष ॥ स० ॥ १० ॥ सांजली रास सोहामणो ए, धरजो हृदय मकार ॥ श्रतम हित जेम हुवे ए, तेम करजो नर नार ॥ स० ॥ ११ ॥ रात्रिभोजननी श्राखडी ए, करजो दोष विचार | अमरसेन जयसेन परें ए, लेहेशो सुख अपार ॥ स० ॥ १२ ॥ निधि पांव नक्ष संवत्सरें ए, वदि आषाढ जगी ॥ पूरण थ चौपइ ए, पडवा
रे दीस ॥ स० ॥ १३ ॥ श्री खडतरगड राजीयो ए, श्री जिनचंद सूरिंद ॥ रतनसूरि पाटवी ए, दीगं होये
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( एस ) आनंद ॥ स० ॥ १४ ॥ शांतिदर्ष वाचक तणो ए, कहे जनहर्ष मुणिंद ॥ वामेय पसाऊले ए, कीर्त्ति कम ला कंद ॥ स० ॥ १५ ॥ पाट मांडे में रच्यो ए, रात्रि जोजन रास ॥ पच्चीश ढालें करी ए, सुणतां लील विलास ॥ स० ॥ १६ ॥ सर्वगाथा ॥ ४७७ ॥ इतिश्री रात्रि जोजन त्यागफलमाहात्म्ये अमरसेन जयसेन नृपरासः सपूर्णः ॥ शुभमस्तु ॥
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॥ इति श्री रात्रिभोजन त्याग फल
माहात्म्यरासः समाप्तः ॥
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(६०)
॥ उर्जन विषे दोहा॥ ॥पाणी घणुं विलोक्यें, कर चोपड्या न हुँति ॥ निर्गुण जण उपदेशडा, निप्फल हुँति न नंति ॥१॥ पुजाण विखहर सदृश है, खेत औरके प्राण ॥ श्राप उदर न नरे तनक, पुष्ट सहाव प्रमाण ॥२॥ज्जा ण चुथा समान है, करे अमूलक चार ॥ सुख जग नहिं श्रापणी, करत ओरकू पीर ॥३॥ उजाण श्र गि सहाव है, जारत अगणित व ॥ आप तृपत होवै नहीं, नाश करत जग सब ॥४॥ उजाण श्र हिथें नितुर है,यहि मंके श्क वार ॥ उजाण काटे व यणथे, दीह रयण बहु वार ॥ ५॥ उजाणजी ज गमें नले, श्नको ए उपयोग ॥ उजाण विण सजाण हुको, उलखहीं किस लोग ॥६॥ उजाण किरतारें किये, पर दूखणहि दिखा॥वे सुणि जन चेतीक री, सीखे श्राप सदा॥७॥ पुजाण संधी गोठडी, कके.संधी नाय ॥ पाणी जेम विलोवियां, मकण नको बाय ॥ ॥ पुजाण जण बब्बूल वण, जोसी चो श्रमिएण ॥ तोहे कांटा वींधणां, जातीतणे गु णेण ॥ए॥
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(६१)
॥ सोरो॥ ॥ जेवां पाका बोर, तेवां मन उर्जन तणां ॥ नीतर कठिन कठोर, बाहिर तो राता रहे ॥२०॥
॥जुवानी विषे दोहा॥ ॥जुवानी है दिन चारकी, ज्यूं पतंगको रंग॥स हजमांहि उमि जायगो, ताको कहा उमंग ॥१॥जु वानीमें फूल्यो फिरत, अमरहि जानत आप ॥खब र न पखकी परत है, शिर यमकी गप ॥२॥जु वानि केसू रंगवत, पल लिन सुंदर दीख ॥ रहत न ही बहु काल यह, देखहु जगकी सीख ॥३॥जुवा निमें जी मरतहै, बहुत जगतमें लोक ॥ ताको सोश्र जिमान क्या, सबही है यह फोक ॥ ४ ॥ बालपनो ज्यूं हखि गयो, त्यूं जुवानी? जा ॥ जरा श्रावहि तब कबु, शुज कृत होवै नांहिं ॥५॥ जुवानीको म द क्या करियें, नहिं रहै बहु काल ॥नाशवंतको गर्व क्या,व्है तो मार निकाल॥६॥जुवा निमें कबु रोग व्है, तोक्या श्रावै काम॥नांहि प्रिय सुख जोग कबु,विष वत लगें तमाम ॥ ७॥ जुवानिमें माया मिले, तौ पु मान कि जात ॥ जावत नहिं यह ना रहै, लगही कालकी लात ॥॥
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(६५)
॥प्रातिविधे दोहा ॥ ॥प्रीतज एसी कीजिये, ज्यूं जल मत्स्य कराय॥ खिणेक जलथी बीउडे, तडफडीने मरि जाय ॥१॥ मने साधजो प्रीतडी,नथि मिलवानो संच ॥सरज्या विण नवि संपजे, करियें कोडि प्रपंच ॥ ॥ नयणां केरी प्रीतडी, जो करि जाणे सोई॥ नयणे जेरसऊ पजे,ते रस सेज न हो ॥३॥प्रीति नली पंखेरुयां, जे जोडिनें मिलंत ॥ पंख विहूणां माणसां,अलगाथी विलवंत ॥४॥ नयण पदारथ नयण रस, नयणे न यण मिलंत ॥ अणजाण्याशुं प्रीतडी, पहेला नयण करंत ॥ ५॥ कीजें प्रीति सुमाणसां, जे जाणे गुण नेथ ॥ सूखड पबरशुं घसी, तोह न अप्पे ॥६॥ प्रीति रीति कलु और है, मुखतें कही न जाय॥मि शरी खाई मूक सो, कहै कहा दरसाय ॥७॥प्रीति सर्वसें राखियें, करहु न कहुँ बिगार ॥ जैसें सहाव लींब रस, मिलत सकलमें धार ॥ ७ ॥ प्रीति बहुत प्रकारकी, तिनमें गहियें शुङ॥काज न बिगरे जाहि तें, को कहै न अशुफ ॥ ए॥ इति ॥
॥ अथ शीखामणना बोलो प्रारंजः ॥ १ श्ष्टदेवनुं ध्यान मनमां धर. २ देशना धणीनी
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(६३) शंका राखवी. ३ जेना वासमां रहीये, तेनो घणो यत्न करवो. ४ जेनुं खूण खायें, तेनी साथै हरामखोरी न करवी. ५ उजडक बेसीने जमवूनही अने जमीने तुरत जानुं पाणी पीवं नहिं. ६ उनां उन्नां पाणी पीवुनहिं.७ निर्दय साथें व्यापार करवो नहिं, पोता ना डोरुने शिखामण श्रापवी, नजरमा राखवो, ला डको करी नाखवो नहिं. ए पाडोशी साथे लडाइ करवी नहिं. १० जेना वासमा रहीयें, तेनी साथें वाद करवो नाह. ११ विना कामें जु बोलवू नहिं. १२ खोटी सादी जरवी नहिं. १३ पोतानी इंडियो वश राखवी. १४ परस्त्रीसाथें प्रीति न करवी. १५ स्त्री ने नेदनी वात कही देवी नहिं. १६ नीच जातिने घरमा राखवो नहिं. १७ ब्राह्मणनो विश्वास करवो नहिं.१७ चौपगां जनावर घणां राखवां नहिं. १ए का म सरतां खेती करवी नहि. २० दयाधर्म अत्यंत आदरवो. २१ पुःखीया जीवो उपर करुणा करवी, तेने यथाशक्ति आश्रय आपवो. २२ रूपवंत स्त्रीसा थें विशेष वार्तालाप करवो नहिं. २३ प्रजातें निशा करवी नहिं. २४ कोनु मर्म कहेवं नहिं. २५ सां
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________________ (64) जे मारगमां चालवु नहिं. 26 महोटा माणासनी मश्करी करवी नहिं. 27 अजाण्या साथे जावू न हिं. 27 रोष उपने थके तुरत को काम करवू नहिं, थोडा विलंबें करवं. शए प्रीति करीयें तो त्रो डवी नहिं. 30 जे काम करीये ते शोच विचार के री करवू. 31 सामो को रीश करी बोलतो होय तो पण पोतें क्षमा करवी. 32 निर्बल माणसने नि र्बल जाणवो नहिं.३३ जे पोताना प्रारब्धे वधे, ते नी साथें अदेखा करवी नहिं. 34 पोतानो धर्म हो डवो नहिं. 35 अफीण कोश्ने खवरावq नहिं.३६ ए कलायें मारगें चालवू नहिं. 37 जेथकी जीवहिंसा थाय तेवं काम करवूनहिं. 30 दान करीने पढ़ें प श्चात्ताप करवो नहिं. ३ए धातुरवादमां धन खोदूं नहिं. 40 धातुरवादीनो विश्वास न करवो. 41 कु माणसनो संग करवो नहिं. 42 वगरकामें कोश्ना घरमां पेसवं नहिं.४३ को अमलदारनो विश्वास समजीने करवो. 44 पोतें जूग पडीयें, ते काम न करवू. 45 राजाना घरनी वात लोकोने कहेवी नहिं. 46 धर्म करवामां विलंब करवो नहिं. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only