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(३) पूर्वज न लहे पिंम, रातें तर्पण नहिं अखंग ॥ए॥ दे वपूजा थाये नाहिं रात,फरे निशाचर करता घात ॥ रयणी उत्तम न हए काम, रयणी न जमीयें देती श्राम ॥१॥ वली प्रत्यक्ष देखाडु दोष, सांजलीनेती पजे संतोष ॥ मन मत धरजो को अमर्ष, पहे॥ ढाल कही जिनहर्ष ॥ ११ ॥ सर्वगाथा ॥ १ए । गु ॥दोहा॥
खं ॥माखी श्रावी अन्नमां,तो थाये ते थर जी,मूके न कीडी श्रावे किमे, तो जाये विद्या बुद्ध ॥१॥ जू जो पहोंचे पेटमां, वधे जलोदर रोग ॥ कोढ करे क रोलिया, थाये माग योग ॥२॥ वाल कंठ रोके स ही, वींबी सडे कपाल ॥ कांटो वींधे तालवू, तेणे नि शि जोजन टाल ॥३॥ पंखी जातिमा केटला, चूण करे नहिं रात ॥ तो माणस कहो किम करे, जेहथी पुर्गति पातासाची करीने मानजो,वात कहं सम जाय॥कथासरस ए ऊपरें,सांजलजो चित्त लाय ॥५॥ ॥ ढाल बीजी ॥ कपूर होवे अतिउज्ज्व
लो रे ॥ ए देशी ॥ ॥वबदेश रसीयामणो रे, नयर छारापुर नाम ॥ खोक तिहां सुखियां वसे रे, विलसे सुख अनिरामरे
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