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(१३) निर्लङ नारी साजे नाही, . ये पुरष तणे शिरदोष रे॥ पं० ॥ अनरथा सेवे पोते सदा, वली थर बेसे निर्दोष रे ॥५०॥॥ नारी मांहे बक्षण नही, वसी नाणे केहनी नीति ॥५०॥जेम मन माने तेम संचरे, गमे कुलकेरी रीति रे ॥ पं०॥३॥ निजखा रथ जो पहोचे नहिं जरतार हणे तो नार रे ॥६॥ बार ऊपरशुं लीपणुं, नारीनो नही विचार रे ॥५॥ ॥४॥ एतो नारी क्यारी कूडनी, कपट तणो जंमार रे ॥६॥ तें कहेवराव्याने में कह्या, रीश में करीश तुं नार रे ॥५०॥५॥ कोठी धोयां कीच ड नीसरे, नारीशु केहो वाद रे ॥ ५० ॥ वाद कर तां वेढ थाये घणी, तिलमांहे किश्यो सवाद रे॥६॥ ॥६॥ हवे किमही जावादे मुजनें, पंखणी कहे सां नल कंत रे ॥ ५० ॥ रयणी जोजन पाप ग्रहेजो, तो जावा युं गुणवंत रे ॥ ५० ॥ ७ ॥ कान ढांकी क हे पंखीयो, एतो सम न करूं मोरी नार रे ॥६॥ ए तो पातक नवि ऊपडे, एनो तो सबलो नार रे॥ ॥५०॥॥ नही जश्य ए कारज रघु, राजा सांज लीयो आप रे ॥ पं०॥ रात्रियोजननुं पंखीयां, ते प ण जाले नहीं पाप रे ॥ पं0 ए॥ सांजली पंखी
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