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(१२) मे तुज केडे हुं श्रावणुंजी, नारी शोने पियुपास ॥ ॥ मागण॥ १३ ॥ एकली नारी केम मूकीयें जी, प्री तम हृदय विमास ॥ ढाल जिनहर्ष यशपांचमी जी, वचन सुणे नृप तास ॥ माग ॥ १४ ॥सर्व ए॥
॥दोहा॥ ॥ चिडो कहे रे चडकली, वहेलोही आवेश॥तुं कहे ते फोकट कहे, मन शंका नाणेश ॥ १॥ हर बेश रही चडकली, चडो कहे मत संताप ॥ गौ स्त्री बालक ब्रह्मनु, नायूँ तो मुज पाप ॥२॥ माथु धू पी चडकली, कहे किशा सम एह ॥ पुरुष हैये खो टा हूए, तुरत देखाडे बेह ॥ ३॥ पुरुष वचन मार्नु नहीं, पुरुष कपटनां गेह ॥ जिम तिम करी नारी जणी, तरी जाये जेह ॥४॥ नारी अबला नर सबल, नरनां हैयां कगेर ॥ न गणे लजा लोकनी, करता कर्म अघोर ॥५॥ ॥ ढाल बही ॥ सुण बेहेनी पीयुडो
परदेशी ॥ए देशी॥ ॥ एतो मीठी वाणी चडकलो, जोखे वाहाली मोरी नारी रे॥ पंखणी कहुं तुजने ॥ नर नारी स सिा नथी, बोलीजें वचन विचारी रे ॥ १॥
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