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________________ (११) जी, श्रापे तो मुज सुत श्राप ॥ माहरे एटयुं काम डे जी, चिंता मुज तणी काप ॥ माग ॥ ५ ॥ जा षा समजे सहु जीवनी जी, यो वरदान मुफ एह ॥ देवें वर दी, राजा जणी जी, राखीयो एटलो नेह ॥ ॥ माग ॥ ६॥ पुत्र होशे ताहारे सही जी, लेहशे जाषातणो नेद ॥ पण कदेशो जो किण श्रागलें जी, जीवितनो होशे बेद ॥ माग ॥ ७॥ श्म वर दोय देश गयो जी, नारी लेश निज लार ॥ आनंद मनमांहे उपनो जी, राय मनहर्ष अपार ॥ माग ॥ ७॥ त रुवर बांहडी वीशम्यो जी,मालो तेणे वृदनी माल ॥ रहे तिणमां बे चडो चडकली जी, वात करे सुकुमाल ॥ माग ॥ ए ॥ पंखीयो कहे सुण पंखणीजी, तुं रहे श्रापणे गम ॥ मत किहां जाये यहां थकीजी, हुँ जाउं बुं किण काम ॥ माग ॥१०॥प्रीतम सु ण कहे चडकली जी, श्रावीश ताहरे साथ ॥ एकल डी हुँ केणिपरें रहुं जी,जाये केम रात्रि विण नाथ ॥ ॥ माग ॥ ११॥ पुरुष श्छा तणा राजीया जी, न वलीशुं करे नेह ॥ मूलगी नारी वीसारी देजी, पु ह ॥ माग० ॥ १२ ॥ हृदय जू यो मुखना जूश्रा जी,पुरुषनो किशो विश्वास ॥ ति Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005387
Book TitleRatribhojan Pariharak Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages66
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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