SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 51
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (४) वसर पामीने रे, जयसेना घर नारी ॥ मननी चिंतेरे प्रतिज्ञा दोहेली रे, केणीपरें पूरी चार ॥ के० ॥५॥ सहु तिणे कर्वा रे वृत्तांत ते वनतणुं रे, पूरव जवनी वात॥तेतो में जाणी रे बालपणाथकी रे, सांजली कहेतां तात ॥ के० ॥६॥ एहतुं सुणीने रे चिंते का मिनी रे, विधि सन्मुख जब होय ॥ चिंतित त्यारें रे सहु श्रावी मले रे, कारण अवर न कोय ॥कुणा॥ श्म सहु श्छा रे पूरे मन तणी रे, सुरनी परें सुकु माल ॥काल गमावे रे राग रंगमां सदा रे, बंधाणां प्रे मजाल ॥के॥॥॥ सुख लपटाणां रे जातां जाणेन ही रे,रात दिवस सुखमांहि ॥ निज चतुराईयें रेप्री तम वश कियो रे,मनमां सदा उत्साहि ॥ के० ॥॥ एकदिन नांखे रे कुमर राजा जणी रे, अमें हवे चाल णहार ॥ अनुमति आपो रे अमने करी मया रे, म लगावो हवे वार ॥ के ॥१॥ दिवस घणेरा रे श्हां रहेतां थया रे, हवे जश्य निजगेह ॥ मिलणो माहरे रेमातपिता जणी रे, जाग्यो बहु परें नेह ॥ के० ॥ ११॥ माय बाप महारी रे वाट जोतां ह शे रे, तेहनी पूरूं खंत ॥ ढाल थई रे ए एकवीश मी रे, थाये जिनहर्ष निचिंत ॥ के० ॥ १२ ॥ Jain Educationa International 8 For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005387
Book TitleRatribhojan Pariharak Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages66
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy