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( एस ) आनंद ॥ स० ॥ १४ ॥ शांतिदर्ष वाचक तणो ए, कहे जनहर्ष मुणिंद ॥ वामेय पसाऊले ए, कीर्त्ति कम ला कंद ॥ स० ॥ १५ ॥ पाट मांडे में रच्यो ए, रात्रि जोजन रास ॥ पच्चीश ढालें करी ए, सुणतां लील विलास ॥ स० ॥ १६ ॥ सर्वगाथा ॥ ४७७ ॥ इतिश्री रात्रि जोजन त्यागफलमाहात्म्ये अमरसेन जयसेन नृपरासः सपूर्णः ॥ शुभमस्तु ॥
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॥ इति श्री रात्रिभोजन त्याग फल
माहात्म्यरासः समाप्तः ॥
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