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________________ (५५) नवियण जावो रे मनमांहे तुमें रे,एह अनित्य शरी र॥वार न लागे रे एहने विणसतां रे, जेम पंपोटो नीर ॥ स० ॥३॥ इंसनाथी रे पाव्या देवता रे, जोवा रूप अपार ॥ एक पलक रे मांहे विणसीगयो रे, चक्री सनतकुमार ॥ स ॥४॥ शकिबोडीने रे राजन नीसस्यो रे,न करे काया सार ॥ एहने पोषी रे न थर आपणी रे, दीधो मोह उतार ॥ स ॥५॥ तेणे ए काया रे जाणी अशासती रे, न धस्यो मोह लगार ॥ तेम तुमें जाणो रे काया कारमी रे, पडतां न लागे वार ॥ स ॥६॥ विचव विचारो रे चपला सारिखो रे, राख्यो न रहे एह ॥ यतन करंतां रे जा ये हाथथी रे, जेम निगुणानो रे नेह ॥ स ॥७॥ नेली कीधी रे कपट करि घणां रे, करि करी बहु था रंज॥राय ले जाय रे चोर पलेवणुं रे, जोवो एह अ चंन ॥ स ॥॥ दिन दिन आवे रे नेडो बाऊखो रे, गणियामांहे घटत॥ एकदिन आवी रे जम लश् जायशे रे, राखी न को शकंत ॥ स ॥॥ मृगप ति जाये रे जेम मृगनें ग्रही रे, तेम लेश्जाशे ए का ल॥ मात पितादिरे राखी नवि शके रे, साथें न को अंतकाल ॥ स ॥१॥ एक दिन मर रेडे स Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005387
Book TitleRatribhojan Pariharak Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages66
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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