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________________ " ( ४३ ) या हिया जोध धाया ॥ मारी ब्यो जाली ब्यो बांधी यो धूंबडी, एम कदेतां नराधीश श्राया ॥ मान० ॥ ॥ १ ॥ गयवर गाजता सूंढ ऊलालता चालता प ता टूक दीसे ॥ धूतां शीश सुर ईसरा सारिखा, चपल तेजी घणा वीचें हींसे ॥ मा० ॥ २ ॥ हुइ असवार तरवार ढालां ग्रहे, धनुषधर तीर तूणीर जरीया ॥ कुंत विजूला उज्ज्वला सारना, धारना ति क्षण निज दब धरीया ॥ मा० ॥ ३ ॥ याव रे धूं बडा कूबडा सामहों, नासजे मत हवे त्रास पामी ॥ ताहरा हाथनो बल हवे जाणस्यां, आणस्यां ताहरे वंश खामी ॥ मा० ॥ ४ ॥ कां रे मरे तुं खूट्या विण बापडा, नाख वरमाल के काल रूठो ॥ एकलो केक लो जोर फोरे किश्यो, जलधि संग्राम तुं लोट मू वो ॥ मा० ॥ ५॥ कायरां नरां किस्युं घणा हुवां शुं ययुं, तुल जिम वायरे ऊडी जाशो ॥ माहरा हाथ चारथमां कुण सहे, जीति मन रीति जे रीत जा शो ॥ मा० ॥ ६ ॥ वचन सुणी कुमरनां आकरा कांकरा, ऊठीया मारवा सदु समेला ॥ मरी कुंजार तेणी वार व्यंतर दुर्ज, आवीयो ताम संग्राम वेला ॥ मा० ॥ ७ ॥ देवनी शक्ति घरी जक्ति निज शिष्यनी, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005387
Book TitleRatribhojan Pariharak Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages66
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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