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(२३) साची जो चित्त दाखे, अंतर श्रमशु केहोराखे॥०॥ चिंता अग्नि चिता जेम बाले, चिंता सुंदर काया गाले॥ ॥ कु०॥६॥चिंता बानी मार कहीजें, एहनो किम ही न नेद लहीजें ॥कु० ॥ कंचनवर्णी काया गाली, थाये सांजल तुं सुकुमाली ॥ कु०॥७॥ सखी सुणो तुम पागल नांखू, तुमशु केहो ? अंतर राखुं ॥ कु०॥ पूरवनव में दीगे सहेली, पंखी देखी थर हुं घेली ॥ कु० ॥ ॥ पूर्वजवनो परणुं नरतार, बीजाशुं तो मुज न विचार ॥ कु॥ राजा बीजा वरने देशे, तो कहोने सखि केम करीशे ॥ कु० ॥ ए॥ श्रारति म नमांहे तेणे सबली, मननी मनमां रहेशे सघली ॥ ॥ कु० ॥ सखीयो कोश् उपाय बतावो, दीजें उत्तर ता त सुहावो ॥ कु० ॥ १० ॥ जयसेना बार अवधारो, चिंता म करो थाशे सारो॥ कु०॥ कोश्क बहेनी प्र पंच करीजें, कालविलंबें फल पामीजें ॥ कु० ॥११॥ किशो प्रपंच मुने संजलावो, थाये कार्य सिद्धिबतावो ॥ कु० ॥ करो प्रतिज्ञा कोश्क महोटी, सखी कहे मत जाणो खोटी ॥ कु०॥ १२ ॥ किसी प्रतिज्ञा क रुं सहेली, दाखो मुजने हवे वहेली ॥ कु० ॥ सखी
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