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________________ (२०) चर्मनो मर्म सांजलीयो, प्रणाम करीने वलीयो हो ॥ १० ॥ जिनहर्ष ढाल थई बारे, नृप सुत श्राव्यो ऊतारे हो ॥ अ० ॥ १३ ॥ सर्वगाथा ॥ २२३॥ ॥दोहा॥ ॥ वली रमवा केरे मिशें, कुमर श्राव्यो वनमा हे ॥ तेणे गमे देखे तिसें, अग्नि कुंग उत्साहे ॥१॥ पावक दारुशुं पूरीयो, जालो जाल विकराल ॥ शी को एक तांतण करी, बांध्यो तरुवर माल ॥२॥ कु मर सिक पासें रह्यो, जोवे तेह अचंन ॥ जोगीने पू ने प्रनो,मांम्यो श्यो आरंज ॥३॥ सिक कहे विद्या जणी, अठोत्तर शो वार ॥ नर बेसी शीके श्णे, साह स धरीय अपार ॥४॥ विद्या आकाशगामिनी, ऊ मे नर आकाश ॥ जो तूटे ते तांतणो, तो खेचरगति तास ॥५॥ जो तूटे नहिं तांतणो, तो तंतुसिक क हाय ॥कुमर नणी योगी कडं, पायें लाग्यो धाय॥६॥ ॥ ढाल तेरमी ॥ सुण सुण वालहा ॥ ए देशी ॥ ॥पली सदा तांतण तणी रे, खाट हिंमोले रे जोय ॥ सांकल सम होये बेसतां रे, तंतु सिह एम होय रे ॥१॥ पुण्य सदा फले ॥ परनवें लाहो थाय रे, पुण्ये सहुमले ॥अणचिंत्यांफल पाय रे ॥ पुण्य० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005387
Book TitleRatribhojan Pariharak Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages66
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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