Book Title: Ratribhojan Pariharak Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 56
________________ (५४) कुमर राय इणी परें रहे पुण॥ सुखमांहे निशि दीस हो पु॥ कहे जिनहर्ष पूरी थर पु॥ ढाल एह त्रेवीश हो पु० ॥ ११ ॥ सर्व गाथा ॥ ४३१॥ ॥दोहा॥ . ॥ण अवसर उद्यानमां, समवसत्या शषि राय॥ सूरि गुणाकर चूंरि गुणा, पाले जे षट्काय ॥१॥ र्या नाषा एषणा, पारिछावणीयादाण ॥ पांच समिति पाले सदा, त्रण गुप्ति सुपहाण ॥२॥ बारे नेदें तप करे, सहे परीसह अंग॥ जीत्या चार कषाय जिणे, धारे रथ शीलंग ॥३॥ पंच प्रमाद करे नही, जे उर्ग ति दातार ॥चार संसार वधारणा,क्रोधादिक परिहा र ॥ ४ ॥ गुण बत्रीश बिराजता, पाले पंचाचार ॥ नविक जीवनें तारवा, मुनिवर करे विहार ॥५॥ ॥ ढाल चोवीशमी ॥ कर्मपरीक्षा करण कु मर चल्यो रे ॥ए देशी॥ ॥सरु आव्या रे राय सणी करीरे, हरख्यो चित्त मकार ॥सैन्य संघातें रे वांदण चालीयो रे, सा थे पुर नर नार ॥ स ॥१॥ विधिशू राजा रे गुरु चरणे नम्यो रे, धर्माशीष गुरु दीध ॥ विनय करीने रे बेग श्रागडे रे, धर्मोपदेश ध्वनि कीध ॥स॥॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66