Book Title: Ratribhojan Pariharak Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 60
________________ ( 45 ) रूप कर अदृश हुवे ए, धर्म तणे परजाव ॥ माटीनें तुरगें चडे ए, नाम थयो सिद्धराव ॥ स० ॥ ५ ॥ किणहीनें नमता नही ए, तेपण लाग्या पाय ॥ जरे दंग रायनें ए, फुर्द्धर पुण्य पसाय ॥ स० ॥ ६ ॥ कुंथु जिणंद पसाउले ए, पाम्या राजजंकार ॥ रतनमय तेनुं ए, बिंब जराव्यं सार ॥ स० ॥ ७ ॥ दयाधर्म पाले सदा ए, पाले जिनवर आण ॥ नमे मुनिजाव शुं ए, पवित्र करे निज प्राण ॥ स० ॥ ८ ॥ इम गृह धर्म पाली करी ए, अणसण लेइ अंत ॥ वैमानिक सुर थयो ए, पुण्यप्रजाव अचिंत ॥ स० ॥ ए ॥ रात्रि जोजन परिहरो ए, सांजली गुरु उपदेश ॥ जाणी दोष बहुपरें ए, पामो सुख सुविशेष ॥ स० ॥ १० ॥ सांजली रास सोहामणो ए, धरजो हृदय मकार ॥ श्रतम हित जेम हुवे ए, तेम करजो नर नार ॥ स० ॥ ११ ॥ रात्रिभोजननी श्राखडी ए, करजो दोष विचार | अमरसेन जयसेन परें ए, लेहेशो सुख अपार ॥ स० ॥ १२ ॥ निधि पांव नक्ष संवत्सरें ए, वदि आषाढ जगी ॥ पूरण थ चौपइ ए, पडवा रे दीस ॥ स० ॥ १३ ॥ श्री खडतरगड राजीयो ए, श्री जिनचंद सूरिंद ॥ रतनसूरि पाटवी ए, दीगं होये Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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