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॥ सोरो॥ ॥ जेवां पाका बोर, तेवां मन उर्जन तणां ॥ नीतर कठिन कठोर, बाहिर तो राता रहे ॥२०॥
॥जुवानी विषे दोहा॥ ॥जुवानी है दिन चारकी, ज्यूं पतंगको रंग॥स हजमांहि उमि जायगो, ताको कहा उमंग ॥१॥जु वानीमें फूल्यो फिरत, अमरहि जानत आप ॥खब र न पखकी परत है, शिर यमकी गप ॥२॥जु वानि केसू रंगवत, पल लिन सुंदर दीख ॥ रहत न ही बहु काल यह, देखहु जगकी सीख ॥३॥जुवा निमें जी मरतहै, बहुत जगतमें लोक ॥ ताको सोश्र जिमान क्या, सबही है यह फोक ॥ ४ ॥ बालपनो ज्यूं हखि गयो, त्यूं जुवानी? जा ॥ जरा श्रावहि तब कबु, शुज कृत होवै नांहिं ॥५॥ जुवानीको म द क्या करियें, नहिं रहै बहु काल ॥नाशवंतको गर्व क्या,व्है तो मार निकाल॥६॥जुवा निमें कबु रोग व्है, तोक्या श्रावै काम॥नांहि प्रिय सुख जोग कबु,विष वत लगें तमाम ॥ ७॥ जुवानिमें माया मिले, तौ पु मान कि जात ॥ जावत नहिं यह ना रहै, लगही कालकी लात ॥॥
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