Book Title: Ratribhojan Pariharak Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 58
________________ (५६) हुनें सही रे, कोण राजा कोण रंक ॥ एह जाणी रे धर्मसंग्रह करो रे,जिहां लगें दूर आतंक ॥सण ॥११॥ जरायें न कीधी रे काया जाजरी रे, तिहां लगें फोरवे प्राणाजरा श्रावशे रे ज्यारें पापिणी रे, घटशे प्राण विन्नाण ॥ स० ॥ १२॥ जरा धूतारी रे एह विध्वंसिर्ण। रे, तप जप किरिया न थाय ॥ पांचे इंछी रे बलहीणां करे रे, लडथडशे निज काय ॥ ॥स० ॥१३॥ धर्म करो रे अवसर पामीने रे, श्रा लस नाणो अंग॥ अवसर चूको रे फरि नहीं श्राव शे रे, जेम नदीयां जल संग ॥ स ॥१४॥ धर्म क रो रे जेम जवजल तरो रे,धर्मथी संपति थाय ॥ध मथी पूगे रे श्राशा मन तणी रे,धर्मे पुरित पलाय ॥स ॥ १५ ॥ धर्मे काया रे निर्मल पामीयें रे, थ मैं जस जयवाद|ढाल चोवीशमी धर्म करो जवि रे, त्यजी जिनहर्ष प्रमाद ॥ स ॥ १६ ॥ इति ॥ ॥दोहा॥ ॥ दीधी इणीपरें देशना,धर्मे रंगाणी देह॥ अमर सेन नृप चिंतवे, धन्य धन्य मुनिवर एह ॥१॥ ए मु निवर तारण तरण,धर्म तणा दातार॥ मित्र एह निः खारथी, करे सहुने उपकार ॥२॥ धर्म सुण्यानुं फ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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