Book Title: Ratribhojan Pariharak Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 59
________________ - (५७) ल किस्यु, जो तजीयन आरंज ॥ गुरुवाणी न रहे हिये, जेम जल काचे कुंज ॥३॥ गुरु वाणी सफ सी करूं, लहुँ हवे संयमनार ॥ जो सांजली नवि श्रा दरं, तो थाये लीपण बार ॥४॥राजकाज कीधां घ णां, कीधां पाप अपार ॥ पाप पखावू श्रापणां, की धो एह विचार ॥५॥श्राचारजनें एम कहे,अमरसे न नरनाथ ॥ राज्य देश निज पुत्रने, व्रत लेगुं तुम पास ॥६॥श्म करी मंदिर आवियो, कुमर नणी देश राज ॥ उत्सवणुं व्रत आदस्यो, अमरसेन शिव काज॥॥तपजप किरिया मुनिधरम,पाली निरतिचार ॥ अंतें अनशन श्रादरी, पहोता मुक्तिमकार ॥७॥ ॥ ढाल पच्चीशमी ॥जरत नृप नावगुं॥ ए देशी ॥ ॥श्रीजयसेन राजा हवे ए, न्यायें पाले राज ॥ अन्याय दूरे तजे ए, वाधी जगमां लाज ॥१॥ सदा जय धर्मथी ए॥धर्मे लील विलास,धर्मथी सुख हुवे ए, धर्मथी सफली श्राश ॥ सदा॥२॥जय सेना पटरागिणी ए, वाली जीव समान ॥ सदा सुख जोगवे ए, रागरंग गुणगान ॥ सदा ॥३॥सूत्र तांतणनी पालखी ए, बेसी रमे पुरमांहे ॥ बहु अच रज लहे ए, दिन दिन अधिक उचाहे ॥स॥४॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66