Book Title: Ratribhojan Pariharak Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(३०) प्रिया, तेहशुं ताहरे प्रीति ॥ बीजाशुं तुज रूसणो, एह किसी तुज रीति ॥ ५॥ सर्वगाथा ॥ ३७५ ॥ ॥ ढाल सत्तरमी ॥ बे कर जोडी ताम रे, नसावी नवेए देशी॥अथवा,जंबडीपमकार,पुरहथिणार ॥ए देशी॥ अथवा,पामी सुगुरु पसाय रे ॥ए देशी॥
॥ लखीयो जेह निलाड,तेहिज पामीयें, होंश कीजें केही घणी ए ॥ देखी परायां लाड, हीयडा हुरकडो, फोकट करे किस्या नणी ए॥१॥जेणे दीधुं बेदान, पुण्य कस्यां घणां॥ते लेहेशे ए कामिनी ए॥वरसेतो नर एक, पण सहुनां मन, कस्या चंचल गजगामिनी ए॥॥रूडा तणी रुंहाड, मन कीजें नहीं, फोकट मन विणसाडीयें ए॥ विधि लखियो संबंध, मरशे तेहनें, चित्तथी सत्य केम गंमीयें ए॥३॥ राजा करे वि चार, तृपति न जोवतां, पामे न मन चूनी रह्यो ए ॥प्रातिहारिणी ताम, सहुनें उलखे, नाम ले ले कह्यो ए ॥४॥ चांदो ए चाण, महोटो राजवी, ए सहसो सीसोडीयो ए॥ए पालण परमार, हयगय रिकि घणी,जगमांहे एणे जस लीयो ए॥५॥ परव तजी पडिहार, परवत जेहवो, अरि खीसवीयो न वि खसे ए॥ रणसिंह ए रागेड, महोटो गढपति,
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