Book Title: Ratribhojan Pariharak Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 39
________________ (३७) ज हो जाणे रे ईश्वर शिर तंबू ताणीयो रे जो॥सोवन चूडलो बांह, जाणे सुरतरु बांह, आज हो बांहे रे बा जुबंध नाग वखाणीयो रे जो ॥१०॥ कनक मुण्डी खंत, अंगुलीयें सोहंत, आज हो सोवन रे अंगुठी अंगूठे बनी रे जो॥कटिमेखल खलकंती, घूघरीयां घ मकंती, आज हो पायें रे जेहर सोवनमय वाजणी रे जो ॥११॥ पहेरी पटोली अंग, उढण चीर सुरं ग, श्राज हो ऊबके रे बाजरणमां जाणे वीजली रे जो ॥ हसती रमती गेल, जाणे मोहनवेल, आज हो पूरी रे थश्शोलमी ढाल जिनहर्ष रली रे जो ॥१॥ ॥दोहा॥ ॥ नारी जोवा पासमां, राजहंस ततकाल ॥ दे खी व्यामोहित थया, बंधाणा ततकाल ॥ पागंतरे॥ (पुरुष पडे जेम माउलो, ज्यारें खूटेकाल)॥१॥ रे जगदीश किशा जणी, तें उपजावी नार॥ण नारी नर जोलव्या, नूला नमे संसार ॥२॥णे नारी जग मोहीयु, हाव नाव देखाड ॥ पोताने वश सहु किया, मनमृग बंधण जाल.॥३॥ जेहने घरे ए कामिनी, थाशे ते धन्य धन्य ॥ बीजा फोकट अवत स्या, पशुवश जेम रतन्न ॥ ४ ॥ जेहने श्रापशे ए Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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