Book Title: Ratribhojan Pariharak Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 48
________________ (४६) ताताहवेसमय विवाहनो,श्राव्यो दिन विख्याताणा ॥ ढाल वीशमी ॥ रघुनाथ मले मो मन वसीया ॥ ए देशी ॥ ॥ जयसेनकुमर गुहिर गाढो,केसरीया करी हुला डो॥ए आंकणी ॥ बबिजरायें उत्सव मामयो, श णगामु पुर सघली जातें ॥ कुमरी जाग्य पुण्या म हारी, वर मलीयो पूरुं मन नांते ॥ ज० ॥१॥ मं मप रचियो सुर नुवन सरिखो, देखतां थाय उबरंग॥ गयवर चडी वर कुमर पधास्यो, तोरण वांदण जाय निःसंग ॥ ज० ॥२॥ गोखें गोखें जोवे गोरी, गली यें नर जोवे वरराज ॥ पुरमांहे गहमह हुईरह्यो, घू रे नगारां नोबत साज ॥ ज० ॥३॥ रूपें देवकुमर अवतरीयो,आजरणे करी दीपे अंग॥वाघो पहेरी अवल कसबीनो, सूरज ज्योति जगमगे अनंग ॥ ॥ ज० ॥४॥ सासु आवी पुंखीयो वरने, सघलाही कीधा आरंज ॥ लाडो देखी मन हरखी लाडी, बर सुरवर सरिखो हुँ रंज ॥ च० ॥ ५॥ पूरवजवनो नेह नगीनो, बानो न रहे व्यापे मोह ॥ खेंचीले मन हियडे पेसी, आकर्षी जेम चमक लोह ॥ज॥ दिशा शोले तन शणगार बनाया, सुर कन्या सरखी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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