Book Title: Ratribhojan Pariharak Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 50
________________ ( ४ ) रह्यां न पूरवे, सूनो केडे राज ॥ शूनुं राज न मू कीयें, कयारेक विणसे काज ॥ २ ॥ राये घणुं कहे वरावियं, पण न रहे श्रमरसेन ॥ सातेहि जो न वि रहो, तो राखो जयसेन || ३ || आग्रह करी राख्यो कुमर, सासु ससरे ताम ॥ जगतावि बोलावीयो, री मननी हाम ॥ ४ ॥ वाली थाये दीकरी, वर प वालो तास ॥ सह सो सो वानां करे, क्षण मेले नहिं पास ॥ ५ ॥ पू ॥ ढाल एकवीशमी ॥ रुषन जिनेसर प्रीतम ॥ माहरो रे ॥ ए देशी ॥ ॥केली करे कुमरी रे जयसेन कुमरशुं रे, दिन दिन नवलो रंग ॥ दिन दिन वधती रे प्रीति परस्परें रे, दिन दिन ति उबरंग || के० ॥ १॥ कुमरी जाणो रे वर पाम्यो जलो रे, पूरव पुण्य संयोग ॥ नृपसुत मोह्यो रे कुमरी रूपशुं रे, जोगवे सुख संजोग ॥ ० ॥ ॥२॥रमे केइ वारें रे वाडी बागमां रे, वापी नीर मकार ॥ कुंम जरावे रे केशर नीरशुं रे, कोले मली निजना र ॥ ० ॥ ३ ॥ मीठे बोले रे वाणी सीमंतिनी रे, रंजे प्रीतम चित्त ॥ क्षण एक पण रे दूर रहे नही रे, पारेवा जेम प्रीत || के० ॥ ४ ॥ एक दिन पूढे रे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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