Book Title: Ratribhojan Pariharak Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text
________________
(४७) जेह ॥ श्रावी चोरीमांहे बेठी, वर पण बेगेसुंदर दे ह ॥ ज० ॥ ॥ गावे धवल मंगल मली गोरी,ब्रा ह्मण करे वेद उच्चार ॥ फेस्या पावक वेदी दोला, वर कन्याने फेरा चार ॥ ज० ॥७॥ हाथ मेलाव्या वर कन्यानां, कारण सहु कीधां लौकिक ॥ चारे मंग ल वरत्या चोरी, लाडो लाडी रह्या नजीक ॥ ज०॥ ॥ ए॥ कर मेलावण रायें दीधो, हय गय कंचन अडु राज ॥ मांहो मांहे रह्यो रस जाजो, परणी जव्या सीधां काज ॥ ज० ॥ १०॥ राजवीयां नां मन रीजाणां, परिगल मीग करी पक्वान्न ॥ जली युक्तिशुं जान जिमार, देश् यान घणुं सन्मा न ॥ ज० ॥ ११॥ जानी सघलाही गहगह्या, राज वीयांने दीधी शीख ॥ खुशीथई सहुको घर चाख्यां, वेवाही बे रह्या सरीख ॥ ॥१॥ सासु देखी जमा
हरखे, करे नक्ति दिन दिन नवि रीति ॥ढाल थ ई.वीशमी ए पूरी, गा जिनहर्ष सोहेलें गीत ॥ ज०॥ १३ ॥ सर्वगाथा ॥३ए॥
Hom१३॥
स
दोहा॥
नप एम
॥श्रमरसेन राजा जणी,कहे बलिन नृप एम ॥ हां रहो पिन केटला, तुमशुंडे बहुप्रेम ॥॥श्रम
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org
![](https://s3.us-east-2.wasabisys.com/jainqq-hq/46de585079384a9409888363c8f2b7a3d2e08f27a7480e63950a0d0a52949778.jpg)
Page Navigation
1 ... 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66