Book Title: Ratribhojan Pariharak Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(४०)
॥दोहा॥ ॥शाने समजावे सखी, चार प्रतिज्ञा दाख ॥ स घला नरपति सांजले, नली परें तुं नाख ॥ १॥ स खी सहुको सांजलो,मलिया बहु नूपाल ॥ चार प्रति झा पूरशे, ते ग्रहेशे वरमाल ॥२॥ माटी तुरंग च लावशे, कदेशे पूरव जम्म ॥ तांतण हींचोलें हिंचशे, रूप फेरवशे तिम्म ॥३॥ एहवं सांजली राजवी, थ या वदन विद्याय ॥ एक एकनें एम कहे, एतो किमे न थाय ॥ ४॥ एता बोलावी नृपति, शुं कीg एणे राय॥मान महोत सहु निर्गम्यो,बेटीने शीखाय ॥५॥ ॥ ढाल अढारमी ॥ तुंगीया गिरि शिखर
सोहे ॥ ए देशी ॥ ॥ वयण सुणी हरख्यो हीये,तव जयसेन कुमार रे॥ ए कला मुजमां अने, पूरीश प्रतिज्ञा चारो रे ॥व य० ॥१॥ तुरत कुमर ऊठी करी, उढ्यो उलटो च म रे॥ रूप फरी गयो मूलगो,कोश न जाणे मर्म रे॥ वय ॥२॥ माटीने घोडे चडी, श्राव्यो वयंवर ग म रे॥ सना सहु देखी करी, अचरिज पामे ताम रे ॥व०॥३॥ हाथ गल्या पग पण गल्या, बाहेर दांत नीकलीया लांबो पेट कूया जिस्यो, केश माथानां
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