Book Title: Ratribhojan Pariharak Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(४१) पलीयां रे ॥ व॥४॥ काया तो रोगें नरी,वांसें तो पुगंध रे ॥ वांसें रुधिर वहे घj, बोले वचन निबंध रे॥व०॥५॥ एहवू रूप बनावीयुं, माटी तणे तुरं ग रे॥ थर असवार फरे तिहां,मंग धरी उबरंगरे ॥ व०॥६॥ कौतुक मनमां ऊपजे, केडे लोक उजा य रे ॥ तुरत घोडाथी ऊतरी, हींचोले हींचाय रे ॥ व०॥७॥बेटे नहिं एक तांतणो, लोह सांकल सम जाणो रे॥लोक कहे तुज नामशें, धूंबड नाम पीला यो रे ॥व०॥॥ हिंचोले केम हींचीयो, पूरवनव नी ढालो रे ॥ चिडो चडकली अमें हुतां, हिंच्यां दूं बहु कालो रे॥ व०॥ ए॥ कुमरी वयण सुणी करी, पामी सघलो नेदो रे ॥ पूरवनवनो पति मुज सखी, मलीयो घणे उमेदो रे॥१॥ सखी कहे एहने वस्यां, चडशे सुकुल कलंको रे॥ यौवन जीवन विणसशे, ह सशे लोक निःशंको रे ॥ व०॥११॥ ए वर नहिं तु ज योग्यता, निसुणी वचन कुमारी रे॥जे निज बोल पाले नही, तेतो बे नवहारी रे ॥ व॥ १२॥ माहा रीप्रतिज्ञा पालगुं,वचन गमुं केम आलो रे ॥ वरमा ला—बड गलें,घाली तेणे ततकालो रे ॥व० ॥१३॥ को नरीया राजवी, स्वयंवर एणे बिगाड्यो रे॥मा
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