Book Title: Ratribhojan Pariharak Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 34
________________ (३२) पात्र पूलुं तेहन में, जक्तिशुं परमान्न रे॥थ संतुष्ट ने पूरी आसन, दीधुं नोजन मान रे॥सांग ॥१॥ सुण प्रजापति एक तुजनें, दीयुं विद्या सार रे । लोक ने आश्चर्यकारी, लहे मान अपार रे॥सांग ॥१३॥ अश्वमाटीनो करीने, तावडे सूकाय रे॥ अमिमांहे पचावी मंत्र, चालतो ते थाय रे ॥ सांग ॥ १४ ॥ में तो असवार थाजे, घालजे अथ नार रे॥चौदमी जिनहर्ष परी, थई ढाल विचार रे ॥ सांग ॥ १५ ॥ ॥दोहा॥ ॥ मंत्र शीखाव्यो मुज जणी, तेणे जोगी ततका ख॥महारो मन हर्षित थयो, कीधो एणे उपकार हय कीधो माटी तणो, मंत्रबलें ततकाल । हेपारक करतो थको, चालंतो मबराल ॥२॥महिमा वाघ्यो माहरो, देशांतर थयुं नाम ॥ मंत्र गयो मुज वीसरी, केटले दिवसें ताम ॥३॥जोगी सिकाचल गयो, के डें गयो हुँ तास ॥ फेरी मंत्र खरोकीयो,पूगी महा री श्राश॥४॥ पगे लागी पाडो क्ल्यो, खागा मुज षट मास ॥ कालें श्राव्यो हुं श्ण पुरी, धरतो मन उ हास ॥५॥राजानी परणे सुता, श्राव्या घणा न रिंद ॥ कला देखाड़े एहने, अश्व करी धानंद ॥६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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