Book Title: Ratribhojan Pariharak Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 35
________________ (३३) ॥ ढाल पन्नरमी ॥ श्मर आंबा आंबली रे, मर दाडिम जाख ॥ ए देशी ॥ ॥माटी. खणवा ऊठीयो हो जी, जाजी लेई रात॥ आणी अश्व नरी करी होही, वलीश्राव्यो परजात ॥१॥ सुगुणनर, सांजल महारी वात ॥ लोनें फुःख प्राणी लदे होजी,थाये आतमघात॥सुपए आंकणी॥ खणतां खाण तूटी पड़ी होजी,हुँ चंपाणो हेगगाकेड लां गी वेदन थर होजी, फोकट कीधी वेठ ॥सु॥शाह वे हुँ जीवं नहिं होजी, लागो मर्म प्रहार॥तुं श्राव्यो उःख कापवा होजी, धन्य धन्य तुज अवतार ॥सु॥ ॥३॥ मंत्रा ' ले तुज नणी होजी, अश्वकरण उप कार ॥ मंत्र शीखाव्यो कुमरने होजी, प्राण तज्यां कुं जार ॥ सु० ॥४॥ निरखी जाल पावक तणी होजी, एशुं दीसे आग ॥ रायसुत पासें गयो होजी, ताणी ले गयो जाग ॥ सु॥ ५॥ अश्व पचंतो निरखीयो होजी, शीतल करीग्रही होत॥मन विकस्यो तन उब स्यो होजी, जाणे अमृत पीत ॥ सु० ॥ ६॥ शांतें आव्यो बाहरें होजी, तात जणी कहे आय ॥ घात अश्ते नर तणी होजी, खाणे प्राण नसाय ॥ सु० ॥ ॥७॥ बीजं कां कडं नहिं होजी, सुता पिता सुत Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66