Book Title: Ratribhojan Pariharak Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 36
________________ (३४) जाक पोतेपण्य जेहने हुए होजी, तास मले सहु आय ।। सुराणा प्रहदिसि नोबत पूरी होजी, थ यो सफल प्रजात ॥ शणगारी कमलापुरी-होजी, सुर नगरी सादात् ॥ सु० ॥ए ॥ स्वयंवर मंम्प रच्यो होजी, सुंदर सोहे अपार ॥ सिंहासण मंगावीयां हो जी, नृपकानें शणगार ॥ सु० ॥१॥ चोकी मांमी जू जूश हो जी,चंपुथा बांध्या पटकूल ॥ वाड बंधावी रे शमी होजी, सुंथाली अकतूल ॥ सु० ॥ ११ ॥ कृ ष्णागरुना धूपणा होजी, महकी रह्या चिहुं उर ॥ कल्या बटकाव गुलाबना होजी, खसबोर वधी जोर ॥ सु० ॥ १२ ॥ राय तेडाव्या मंग हो जी,श्राव्या धरता होंश॥पवन जको विजणे होजी, धन्य वर से जे पुंस ॥सु॥१३॥ बंदीजन बिरुदावलि होजी, मागण मल्या अनेक ॥ ढाल पन्नरमी ए थर होजी, धरी जिनहर्ष विवेक ॥सु॥१४॥ सर्वगाथा ॥२३॥ ॥ दोहा॥ ॥ हवे बोली चिंता जरी, कुमरी सहियर संग॥ नृप मुज मन जाणे नहिं, केम रहेशे श्हां रंग॥१॥ श्रारंज मांगयो श्रति घणो, प्रिय विणा सहीयांह ॥ हांसी थाशे लोकमां,कुमरी एम कहीयांह ॥२॥ इम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66