Book Title: Ratribhojan Pariharak Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(२६) जब नृप कमलापुरी,स्वयंवर मंगप ज्यांह ॥ पुत्रीना मंगप अड़े राज्य पधारो त्यांह ॥२॥ अमरसेन जय सेनशुं, चाव्या सैन्य संघात ॥ अविछिन्न प्रयाणशें, श्राव्या पुर थर वात ॥३॥ राजा बहु नेला थया, बलिन नूप तिवार ॥ पुरपरिसर उतारीया, अवल हवेली सार ॥॥ जक्ति करे राजा घणी, राजवीयांनी जोर ॥ जे जे जोश्ये ते सहु, आपे करीने होर ॥५॥ ॥ ढाल बारमी ॥ बींदलीनी देशी ॥ मांकड
मूगलो ॥ ए देशी ॥ ॥ निज मेरे राय राणा, करे केली सहु सपराणा हो॥अचरिज वात सुणो, वात सुणो हवे आगें, सांजलतां मीठी लागे हो॥॥॥जयसेन कुमर नीसरीयो, रमवा वनमा संचरीयो हो ॥०॥ एक वृक्ष नीकुंजमां श्रायो, धरतो मन हर्ष सवायो हो ॥श्रण ॥॥ बेगे दीठो संन्यासी, वींव्यो तन चर्म विलासी हो ॥१०॥ आंखडीयां तो गश् ऊमी, ते पण दीसंती ग्रॅमी हो ॥ ॥३॥ मुख वांकुं वांकी नासा, लडबडता होठ तमासा हो॥श्रण ॥ दांत तो गजदंत समाणा, पग बोटा साथल घाणा हो ॥॥ ॥४॥ कान महोटा माथु महोटुं,कोढ रोग शरीर
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