Book Title: Ratribhojan Pariharak Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 26
________________ () कहे करो चारे विशमी, ए जिनहर्ष ढाल कही दस मी ॥ कु० ॥१३॥ सर्वगाथा ॥ १५॥ ॥दोहा॥ ॥ जयसेना नांखे सही, बहेनी प्रतिज्ञा दाख ॥ तुज बोले जव पाउलो, पहेली ए हिज लांख ॥१॥रू प अदृश्य करे वली, द्वितीय प्रतिझा एह॥त्रीजी म होटे हय चडी, मंगप श्रावे जेह ॥२॥ चोथी का चा सूत्रनें, हिंचे हीमोले जेह ॥ चारे प्रतिज्ञा पूरवी, वर वरवो ते तेह ॥ ३ ॥ जली जली तें बुद्धि कही,ए हथी थाशे सिहि ॥ जयसेनाहरषी कहे, जली बुद्धि तें दीध॥कुमरीरलीयायत थक्ष, सुमती सखीनी जो ३॥ हवे बीजो नर मुजजणी, परणी न शके कोश॥५॥ ॥ ढाल अग्यारमी॥कुंता माता एम जणे॥ए देशी॥ ॥एकदिन दीठी हो कुंअरी,रायें यौवन माती। परणावी नहिं एहनें, हूंतो थयो ब्रह्मघाती रे॥एक॥ ॥१॥सांनल महेंता हो मुज सुता, महोटी थश्य अ पारो रे ॥ सरखी जोडी हो जोश्ने, परणाईं जरतारो रे ॥ एक ॥२॥ नां तुमनें खयंवरा, मंगप राय मंमावो रे ॥ देश सहुना हो राजवी, मूकी दूत तेडावो रे ॥ एक० ॥३॥ परणे कुमरी हो जोश्ने, मन मा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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