Book Title: Ratribhojan Pariharak Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 16
________________ (१४) ना बोलडा, नृप मन यो संदेह रे ॥ पं०॥ पूढुं हुँ केहनें जार, कोण संशय नांगे एह रे ॥ पं० ॥ ॥ १७॥ एम चिंतवी घोडे चडी, जोवे कानन मन रंग रे ॥ ५० ॥ साधु लता तरुमंग, देखी हैयडे जबरंग रे॥.पं० ॥११॥ तुरत अश्वथी ऊतरी श्रावी,प्रणम्या मुनिना पाय रे ॥६॥धर्माशीष दीधी रायने, बेगे पागल चित्त लाय रे ॥५०॥ १५ ॥ कर जोडी विनय करी घणो, कहो करुणावंत कृपाल रे॥ पं०॥रात्रिनोजननो केटलो, दोष दाखो दीन दयाल रे ॥ पं० ॥ १३ ॥ नरराय सुणो मुनिवर क हे, केम दोष अशेष कहेवाय रे ॥५०॥ थाये आयु बरस असंख्यन, सो रसना सो मुख थाय रे ॥६॥ ॥१४॥ कहेतां थाय पूरा नही, रात्रिनोजननां पाप रे ॥ पं॥ ढाल बही ए पूरी थर, जिनहर्ष कहे मुनि श्राप रे ॥५०॥ १५॥ सर्वगाथा ॥ ११४ ॥ ॥दोहा॥ ॥ पण महोटा अवगुण कहुँ, सांजल तुं धर्मिष्ठ । नई नवलगें जीवनी, घात करे पापिष्ट ॥१॥पातक पाये जेटद्यु, एक सर शोषंतांह ॥ एकशो एकनवशो पके, ते एक दव देतांह ॥२॥होत्तरसो नवलगें, Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66