Book Title: Ratribhojan Pariharak Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(१५) गुण रूप कला तेज निर्मलो, नीलेष्टफोही पे जिम् नाण रे ॥ सुरकुमर सरिखो फूटरो, प्रंगटी जाणे. णखाण रे ॥ सेना॥१२॥ वालो लागे सहु लोकनें, पुण्यवंत हुवे जे बाल रे॥जिनहर्ष पुण्यथी पामीयें, संपूर्ण श्राठमी ढाल रे॥ सेना ॥ १३ ॥
॥ दोहा॥ ॥ एक दिवस उत्संगमां, सुत लही बेगे तात ॥ सहेजें पंखीनी कही, पूरवजवनी वात॥१॥सांजली मूळ पामीयो, नोंयें पड्यो ततकाल ॥ लोचन मी चाई गयां, चित्त रहित थयो बाल ॥२॥ आकुल व्या कुल नृप थयो, राणी करे विलाप ॥ खमा खमा सह को कहे, वाय वींजे नृप थाप ॥३॥ पाणी वलमां ऊगीयो, कुमर थयो सावचेत ॥ राय कहे सुत शुं थयु, थयो अचेत कुण देत ॥४॥ वात तुमें कहेतां सुणी, पंखीनी में तात ॥ में दीगे जव पाब्लो,तेणे थ एहवी वात ॥५॥ सर्वगाथा ॥ १५७॥
॥ ढाल नवमी ॥ अलबेलानी देशी ॥ ॥रात्रि जोजननो हवे रे लाल, पाप जाणी तेणें बा लाहितकारी रे ॥ कीधी मनशुं श्राखडी रे लाल, रा ज्यकुमर सुकुमाल ॥१॥ हितकारी रे, रात्रिनोजन
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