Book Title: Ratribhojan Pariharak Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 9
________________ ( ७ ) जी, ए सुखनुं बे गम ॥ ज० ॥ ए ॥ सुरी कहे मुक शुं रमो जी, व्यो यौवननो लाह ॥ मुक्ति जोडी बे म ली जी, मिटे हीयानो दाह ॥ ज० ॥ १० ॥ तुज मुज पूरव लेखथी जी, यावी मल्यो ए योग ॥ तो हवे किशी विचारणा जी, जोगवो मुजशुं जोग ॥ ॥ ॥ ११ ॥ मानव जव पामी करी जी, व्यो लाहो गु वंत || अवसर नहीं श्रवशे जी, पूरो मननी खं त ॥ ज० ॥ १२ ॥ आव्यानें आदर दीये जी, मूके न ही निराश | उत्तम नर पीडे नही जी, पूरे सहुनी श्र श ॥ ज० ॥ १३ ॥ वारं वार करूं विनति जी, ढील न खमणी जाय ॥ कामव्यथा महारी मिटे जी, मेलो यो महाराय ॥ ज० ॥ १४ ॥ घणुं कहावो बो की स्युं जी, मानो मुज अरदास ॥ ढाल त्रीजी पूरी य‍ जी, करो जिनहर्ष विलास ॥०॥१५॥ सर्वगाथा ॥ ५७ ॥ ॥ दोहा ॥ क ॥ तुं नमरो हुं मालती, फूली यौवन बाग ॥ रस ले रसीया साहेबा, तुं मलीयो मुज जाग ॥ १ ॥ क ह्युं करीश जो माहरू, तो तुज़नें वर देश ॥ नहीं तो रूठी तुज जणी, श्हां ऊनां मारेश ॥ २ ॥ रूठी इं यति आकरी, तूठी शीतल जाए ॥ अंत न लीजें Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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