Book Title: Ratribhojan Pariharak Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 6
________________ (४) ॥१॥ नाइ सुणजो कथा सुरंग ॥ रयणीनोजन टाल जो रे, थाये जेम उबरंग रे ना ॥ सुपए आंक जाश्रमरसेन राजा तिहां रे, पाले राज्य अनंग ॥ परी पाय लगावीया रे, कीर्ति जास उत्तंग रे॥ना ॥ चंजसा पट्टरागिणी रे, रूपें रति सादात॥ णे इंजनी अपहरा रे, सहु नारीमा जांत रे ॥ ना जमर विलुको मालती रे, क्षण मूके नही सतम राय राणी मोहीयो रे,राखे अविहड रंग रे॥ ना० ॥४॥ राज्य संपूरण सहु परें रे, घरमां नवे निधान ॥ पण फुःख के एक वातनुं रे, नही तू पर्ने संतान रे ॥ नाश् ॥५॥ चित चिंता निशि दि न करे रे, करे अनेक उपाय ॥ पण डोरु श्रावे नहीं रे, पहोतो डे अंतराय रे ॥ नाश्ण ॥६॥ मुज केडे, कोण थायशे रे,राज्य तणो रखवाल ॥ मुजकेडें पूरो थयो रे, पडियो चिंता जाल रे ॥जाश्० ॥ ७॥ जिण घर पुत्र न चांजणा रे,तिणे अंधारो होय॥जग शूनो पुत्रां विना रे, हैये विचारी जोय रे ॥ जा ॥७॥ ते घर घरमांहे कयुं रे,जिणघर खेखे पुत्र ॥ पुत्र स फळे काहिसे रे, कोण राखे घर सूत्र रे ॥ जाए Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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