Book Title: Ratnapala Nrup Charitra Author(s): Surendra Muni Publisher: Pukhraj Dhanraj Sheth View full book textPage 8
________________ (3), वाले चारित्र रूपी नांव का सहारा लेने का मन में दृढ़संकल्प कर लिया। इन भावनाओं को सफल बनाने के लिए आप रात-दिन निमग्न रहा करते / आखिर उन चिन्ताओं से = निवृत्ति पाने के लिए एक दिन घर से भाग निकले और गोधे में पन्यासजी श्री गम्भीर विजयजी महाराज के पास आ / पहुँचे / बचपन से ही आपका संसार के प्रति अनुराग न था, . इसका यह पारणाम / 1 . इंधर आपके पिता जो नगर सेठ थे। पुत्र-रत्न को घर | में न पाकर आकुल-व्याकुल हो चारों तरफ खोज करने लगे। परन्तु आपका कहीं पता न लगा। दूसरे दिन किसी व्यक्ति ने कहा कि आपके पुत्र गोधे में पन्यासजी महाराज साहब के पास हैं। इस प्रकार सन्तोषजनक समाचार पाकर मातापितादि का हृदय शान्त हुआ। वे उसी समय गोधे गये और बालक हीरालाल को समझाकर वापिस घर ले आये। लेकिन धार्मिक प्रवृत्तियों में रंगे हुए व संसार रूपी विषपन्नग से डरे हुऐ होने के कारण यह संसार इन्हें नहीं भाया / इनके पिता ने इनको संसार श्रृंखला में बांधने के लिए बहुतेरे उपाय किये मगर वे सब निष्फल हुए। कुछ समय निकाल कर फिर घर से निकले और स्वजन-सम्बन्धियों से नजर बचाकर सीधे रेल्वे स्टेशन पर पहुंचे। ठीक उसी समय ट्रेन आचुकी P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak TrustPage Navigation
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