Book Title: Rajvidya Author(s): Balbramhachari Yogiraj Publisher: Balbramhachari Yogiraj View full book textPage 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आनन्द मंगलाचार की बधाय बट रही है । विद्धान गुणी जनों का यथावत सत्कार होता है, दुष्ट उपद्रवों के शान्ति की शिक्षायें हो रही है न्याय मर्यादों के प्रबन्धों में सुधार हो रहा है प्रजावों में विविध विद्यावों का प्रचार हो रहा है गरीब दीन प्रजा विधवा स्त्रियां अपणे पोषण में असमर्थों का तथा अन्ध पंगु अनाथ बालकों का पालन पोषण हो रहा है | आप जब से राज सिंहाशन पर सुशोभित हुवे है राम राज्य वा धर्म राज्य चल रहा है आप स्वयं प्रजा को शिक्षा कर रहे हैं जैसे श्रीमद्भगवद्गीता में कहा है ''यद्यदाचर ति श्रेष्ठः ततदेवेतरोजनः' याने जो बड़े श्रेष्ठ पुरु. पचा राजा करता है उसी माफिक या उसी की नकल दूसरे करते है याने आप दुर्व्यशनों से निर्वत है तो प्रजा भी दुर्व्यशनोंको त्याग रही है आपने मर्यादा पूर्वक एक ही विवाह श्रेष्ठ समझा है तो प्रजावों में भी सदाचार फैल रहा है। For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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