Book Title: Pratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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"कृतज्ञता ज्ञापन" भारतीय-संस्कृति संस्कार-प्रधान है। संस्कारों से ही संस्कृति बनती है। प्राचीनकाल से ही भारत अपनी समृद्ध संस्कृति के लिए विश्वपूज्य रहा है। भारत की इस सांस्कृतिक-धारा को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए भारतीय-विद्वानों ने समय-समय पर अनेक ग्रंथों की रचना कर अपनी इस संस्कृति का पोषण किया है। संस्कार सम्बन्धी विधि-विधानों से युक्त वर्धमानसूरिकृत 'आचारदिनकर' भी एक ऐसी ही महत्वपूर्ण कृति है, जिसमें भारतीय-सांस्कृतिक-चेतना को पुष्ट करने वाले चालीस विधि-विधानों का विवेचन मिलता है। इसमें मात्र बाह्य विधि-विधानों की ही चर्चा नहीं है, वरन् आत्मविशुद्धि करने वाले धार्मिक एवं आध्यात्मिक विधि-विधानों का भी समावेश ग्रंथकार ने किया है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इस ग्रन्थ की प्रासंगिकता को देखते हुए मैंने इस ग्रंथ का भावानुवाद सुबोध हिन्दी भाषा में करने का एक प्रयास किया है।
मेरा अनुवाद कैसा है ? यह तो सुज्ञ पाठक ही निर्णय करेंगे। मैंने अपने हिन्दी-अनुवाद को मूलग्रंथ के भावों के आस-पास ही रखने का प्रयत्न किया है। विधि-विधान सम्बन्धी ग्रन्थ के अनुवाद का यह मेरा प्रथम प्रयास है। मूल मुद्रित प्रति में अनेक अशुद्ध पाठ होने के कारण तथा मेरे अज्ञानवश अनुवाद में त्रुटियाँ रहना स्वाभाविक है। यह भी सम्भव है कि ग्रंथकार की भावना के विरुद्ध अनुवाद में कुछ लिखा गया हो, उस सबके लिए मैं विद्वत्वर्ग से करबद्ध क्षमा याचना करती हूँ।
प्रज्ञामनीषी प.पू. जम्बूविजयजी म.सा. ने इस ग्रन्थ के अनेक संशयस्थलों का समाधान प्रदान करने की महती कृपा की, एतदर्थ उनके प्रति भी मैं अन्तःकरण से आभार अभिव्यक्त करती हूँ।
___ इस पुनीत कार्य में उपकारियों के उपकार को कैसे भूला जा सकता है। इस ग्रंथ के अनुवाद में प्रत्यक्षतः परिश्रम भले मेरा दिखाई देता हो, किन्तु उसके पीछे आत्मज्ञानी, महान् साधिका, समतामूर्ति, परोपकारवत्सला गुरुवर्या श्रीविचक्षणश्रीजी म.सा. के परोक्ष शुभाशीर्वाद
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