Book Title: Pratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
View full book text
________________
"सादर समर्पण"
साधक जीवन में श्रद्धा, विनय, विवेक और क्रिया आवश्यक है। जीवन को सार्थक करने के लिए हमें संस्कारों द्वारा अपने-आपको सुसंस्कारित करना चाहिए। _ पूर्व भव में उपार्जित कुछ संस्कार व्यक्ति साथ में लाता है और कुछ संस्कारों का इस भव में संगति एवं शिक्षा द्वारा उपार्जन करता है; अतः गर्भ में आने के साथ ही बालक में विशुद्ध संस्कार उत्पन्न हों, इसलिए कुछ संस्कार-विधियाँ की जाती हैं। प्रस्तुत पुस्तक संस्कारों का विवेचन है। मूलग्रन्थ वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर है। साध्वी मोक्षरत्नाश्री ने इसका सुन्दर और सुबोध भाषा में अनुवाद किया है।
आचारदिनकर ग्रन्थ के प्रणेता खरतरगच्छ के आचार्य वर्धमानसूरि जी ने गृहस्थ एवं साधु-जीवन को सुघड़ बनाने के लिए इस ग्रन्थ की रचना की है। प्रथम भाग में गृहस्थ के एवं द्वितीय भाग में साधु-जीवन के सोलह संस्कारों का उल्लेख है तथा तीसरे एवं चौथे भाग में गृहस्थ एवं साधु-दोनों के द्वारा किए जाने वाले आठ संस्कारों का उल्लेख किया है। जैसे प्रतिष्ठा-विधि, प्रायश्चित्त-विधि, आवश्यक-विधि, आदि। यह संपूर्ण ग्रंथ बारह हजार पाँच सौ श्लोकों में निबद्ध है।
आचारदिनकर ग्रंथ का अभी तक सम्पूर्ण अनुवाद हुआ ही नहीं है। यह पहली बार अनुवादित रूप में प्रकाशित होने जा रहा है। जनहितार्थ साध्वीजी ने जो अथक पुरुषार्थ किया है, वह वास्तव में प्रशंसनीय है।
विशेष रूप से मैं जब भी पूज्य श्री पीयूषसागरजी म.सा. से मिलती, तब वे एक ही बात कहते कि मोक्षरत्नाश्रीजी को अच्छी तरह पढ़ाओ, ताकि जिनशासन की अच्छी सेवा कर सके, उनकी सतत प्रेरणा ही साध्वीजी के इस महत् कार्य में सहायक रही है।
इसके साथ ही कर्मठ, सेवाभावी, जिनशासन के अनुरागी, प्राणी-मित्र कुमारपालभाई वी. शाह एवं बड़ौदा निवासी, समाजसेवक, गच्छ के प्रति सदैव समर्पित, अध्ययन हेतु निरंतर सहयोगी नरेशभाई शांतिलाल पारख, आप दोनों का यह निर्देश रहा कि म.सा. पढ़ाई
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org