Book Title: Prasad Mandan
Author(s): Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 7
________________ mea surekans ईप, फुट योर गज प्रादिका माप प्रीटीका सानाश्म से हुआ है। इसलिये इतका प्रसारको तक कला पा रहा है । प्राधुनिक पिाल्पी गुल को एक इंच और हाय को दो फुट मार के कार्य करते हैं। ग्रंथकार भासाद का निर्मागा करने के लिये यह प्रासाद अंडन नाम का प्रकार विद्वान् 'मम' नाम के सूत्रधारा के महाराणा कुकर. अम्बरा है। इस विषय में बतानुर्वक वर्णन सुरक्षित विद्वदल्न डॉ. बासुदेव शरणजी अप्रवाल अध्यक्ष-कला और वास्तुविभाग, काशी विश्वविद्यालय की लिसी हुई बिस्तृत भूमिका है, इसमें विस्तार पूर्वक लिखा गया है। ग्रंथविषय इस ग्रंथ में पाठ अध्याय है । प्रथमायाप में प्रसाद की १४ जाति, भूमि परीक्षा, सातमुहूर्त, परसा, आय, व्यय, नक्षत्र प्रादिमा परिणत, विकसाधन, लातविधि कूर्ममान, मारिएर मावि शिला का नाप और देवालय बांधने का फल इत्यादि विषयों का वर्णन है। assesLASUMANMASHTAM दिकसाधन वास्तु शिल्पग्रंथों में ध्रुव को उत्तर दिशा मान करके दिक्साधन करने का विधान है, परन्तु माधुनिक वैज्ञानिक दिक्साधन यंत्र जिसको कुतुबनुमा कहते हैं, इससे देखने से मालूम होता है कि धूम ठीक उत्तर दिशा में नहीं है, पश्चिम दिशा तरफ लगभग बीस डीग्री हटा हुआ मालूम होता है। जिसे भूध को उतर दिशा मान करके दिशा का साथन किया जाय तो वास्तविक दिशा कामान नहीं होगा। AYANTITARAMMAR दिन में दिक्सापन बारह अंगुल के भाव वाला शंकु से करने का विधान है। परन्तु सूर्य प्रतिदिन ... एक ही बिन्दु के ऊपर उदय नहीं होता है । जिसे शंकु की छाया में विषमता होती है। इसलिये इसमें भी अमुक अंशों के संस्कार की पारश्यकता रहती है । एवं धधरण, कृतिका, किया मोर स्वाति नक्षत्र भी बराबर पूर्व दिशा में उदय नहीं होते हैं, जिसे इससे भी प्रास्तविक दिशा का कान नहीं होता। इस शिकसाधन के आमत रिसर किया आय तो प्राधुनिक प्रशानिक दिक्सामन यंत्र द्वारा ही करना अधिक अच्छा रहेगा । शास्त्रों में लिखे हुए प्रमाण उस समय बराबर होंगे, परन्तु सैंकड़ों वर्ष भरतीत होनेसे : नक्षत्र और वाराणों की स्थिति में परिवर्तन होगाते हैं। खात मुहर्स के बाबत में शेषनाग चक देखा आता है, उसमें भी अधिक मतमतांतर है। कोई मास्क पोषजाग की स्थिति मष्टि क्रम से मानते हैं तो कोई शास्त्र विलोम क्रम से मानते हैं। इसमें भी ज्योतिष शास्त्र और वास्तुशास्त्र में बहूत मतांतर है । इसका विशेष बुलासा मेरा अनुवादित राजयक्षम मेडन ग्रंथ में लिया है। दूसरे अध्याय में जगती (प्रासाद बनाने की मर्यादित भूमि ) का वर्णन है । तथा देवों के वाहन का स्थान और उसका उक्ष्य, जिन प्रासाद के माप का क्रम, देव के सामने अन्य देव स्थापित करने का विषय, विशा के देव, शिबस्नानोदक का विधार, प्रदक्षिणा, परनाल पौर देवों के प्रायतनों का बयान है।

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