Book Title: Pramukh Jainacharyo ka Sanskrit Kavyashastro me Yogadan
Author(s): Rashmi Pant
Publisher: Ilahabad University

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Page 7
________________ गुप-भेदों पर प्रकाश डाला गया है। षष्ठ अध्याय "अलंकार-विवेचन व जैनाचार्य" में अलंकार के सामान्य स्वरूप पर प्रकाश डाला गया है। तत्पश्चात शब्द व अर्थ की प्रधानता को ध्यान में रखकर अलंकार के शब्दालंकार आदि भेदों पर विचार किया गया है तथा अन्त में प्रकृति के आधार पर मान्य अर्थालंकारों के वर्गीकरप का विवेचन है। सप्तम अध्याय "नाट्य का समावेश" में नाट्यशास्त्रीय तत्वों पर विचार किया गया है। इनमें जैनाचार्यो द्वारा रचित अलंकारशास्त्रों में पाये जाने वाले नाट्य तत्त्व ही प्रमुख हैं। नाट्य की उत्पत्ति, नाट्यशास्त्रीय प्रमुख ग्रन्थों का परिचय, नायक-स्वरूप उसके सात्विक गुप तथा उसके भेद, प्रतिनायकस्वरूप, नायक के अन्य सहायक पात्रों - विदूषक आदि, नायिका - स्वरूप, नायिका-भेद, नायिका के सत्त्वज अलंकार, प्रतिनायिका तथा नाट्य वृत्तियां विवेच्य विषय हैं। प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध के प्रस्तुतीकरप में, मैं अदेय गुरूवर्य डा. सुरेशचन्द्र जी पाण्डे (प्राध्यापक, संस्कृत - विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय) की हृदय से आभारी है, जिनके कुशाल - निर्देशन, कृपा व सज्जनता से यह शोध - प्रबन्ध अनुपाणित हुआ है। साथ ही मैं श्रद्धय गुरूवर्य डा. सुरेशचन्द्र जी श्रीवास्तव (अध्यक्ष, संस्कृत - विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय) की भी हृदय से आभारी है जिन्होंने अपनी कृपा व स्नेह

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