Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

Previous | Next

Page 11
________________ [10] ******* -*-* ** * * *********** पृष्ठ संख्या ३३२ क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या क्रमांक विषय ३. मनुष्य स्थान १८७|११. दर्शन द्वार ४. भवनवासी देव स्थान १८९/१२. संयत द्वार ५. वाणव्यंतर देवों के स्थान २१३ | १३. उपयोग द्वार ६. ज्योतिषी देवों के स्थान २२३ १४. आहार द्वार ७. वैमानिक देवों के स्थान २३० १५. भाषक द्वार १०. सिद्धों के स्थान २५५ १६. परित्त द्वार १७. पर्याप्त द्वार तीसरा बहुवक्तव्यता पद २७१ |१८. सूक्ष्म द्वार १. दिशा द्वार २७३ १९ संज्ञी द्वार २. गति द्वार |२०. भवसिद्धिक द्वार ३. इन्द्रिय द्वार २९० २१. अस्तिकाय द्वार ४. काय द्वार २९५ २२. चरम द्वार ५. योग द्वार ३२४ | २३. जीव द्वार ६. वेद द्वार ३२५ २४. क्षेत्र द्वार ७. कषाय द्वार ३२६ २५. बंध द्वार ८. लेश्या द्वार २६. पुद्गल द्वार ९. सम्यक्त्व द्वार ३२९ / २७. महादंडक द्वार १०. ज्ञान द्वार ३३० ३३४ ३३५ ३३६ ३३७ ३३८ ३३९ ३४० २८८ ३४१ ३४२ ३४९ ३५१ ३५२ ३७४ ३२७ ३७७ ३८९ **** Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 414