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में अपने भाई की सहायता करने के लिए उन्हें अपना अध्ययन छोड़ ; देना पड़ा । उन्होंने अपने चाचा के मार्गदर्शन में अपने हिस्से में . आयी रायपुर मिल में टाइमकीपर, स्टोरकीपर आदि से कार्य प्रारम्भ किया और बाद में मिल के संचालन विषयक सभी कार्यों में योग्यता . अर्जित करके अपनी तेजस्वी बुद्धि एवं कार्य कुशलता से उसे भारत. की प्रसिद्ध एवं अग्रगण्य कपड़ा मिलों की श्रेणी में लाकर रख दिया । उसके बाद अशोक-मिल, अरुण-मिल, अरविंद-मिल, नूतन-मिल, अनिलस्टार्च और अतुल संकुल आदि अनेक उद्योग-गृहों की सन् १९२१ से १९५० के बीच स्थापना करके लालभाई-ग्रुप को देश के अग्रगण्य उद्योगगृहों में प्रतिष्ठित कर दिया । ___ व्यावसायिक कार्यों के साथ साथ कस्तूरभाई ने अपने पूज्य पिताजी की तरह लोक कल्याण के कार्यों में भी बड़े उत्साह से भाग लिया । सन् १९२१ में अहमदाबाद नगरपालिका के अध्यक्ष के निर्देश से उन्होंने और उनके अन्य भाइयों ने नगरपालिका की प्राथमिक शाला को ५० हजार का दान दिया था । सन् १९२१ के दिसः म्बर माह में जब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन अहमदाबाद में हुआ तब पंडित मोतीलाल नेहरू के साथ उनका मैत्री सम्बन्ध हुआ । १९२२ में सरदार वल्लभभाई पटेल की सलाह से वे भारतीय संसद में मिल मालिकों के प्रतिनिधि के रूप में चुने गये । १९२३ में जब स्वराज पक्ष की स्थापना हुई तब अहमदाबाद तथा बम्बई के मिल-मालिकों की ओर से उसे पाँच लाख का दान दिलवाया था । संसद में बस्त्र पर चुंगी समाप्त करने का प्रस्ताव कस्तूरभाई ने रखा था और शासन की अनेक विघ्न-बाधाओं के बावजूद भी उसे स्वीकार करवा लिया । स्वराज पक्ष के सदस्य नहीं होने पर भी कस्तूरभाई को पं० मोतीलालजी ने स्वराज-श्रेष्ठ की उपाधि प्रदान की थी ।
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