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उपोद्घाता
ADVI
समस्या
पूर्ति ।
पेतम्
प्रवचनशक्ति विशुद्धि
जिनवहभगणि की व्याख्यानपटुता, प्रवचनशक्ति की भी बहुत प्रसिद्धि हुई। एक बार विक्रमपुर के आसपास बिहार कर, 'काइयो- रहे थे। मरुकोर्ट निवासियोंने उनके प्रवचन की प्रशंसा सुनकर उनको अपने नगर में बुलाना चाहा। बहुमानपूर्वक बीनती करने
पर जिनवल्लभगणि विक्रमपुर होते हुए मरुकोट्ट पधारे। वहां पहूँचने पर श्रावने एकत्र होकर बड़े ही विनीतभाव से प्रार्थना की
कि 'हे भगवन् ! हम लोग आपके श्रीमुख से भगवद् वचनों पर प्रवचन सुनना चाहते हैं। ' जिनवल्लभगणिने कहा-- श्रावकों ॥१०॥
की यह इच्छा सर्वथा उचित और श्लाघ्य है।' अतः शुम दिवस से प्रवचन प्रारंभ हुआ। अपने व्याख्यान के लिये उन्होंने से श्रीधर्मदासगणि कृत उपदेशमाला की निम्नलिखित गाथा को चुना:
"संचच्छरमुसभजिणो, छम्मासा बदमाणजिणनंदो । इय विहरिया निरसणा, जइज एओवमाणेणं ॥३॥"
इसी गाथा को लेकर वाचनाचार्य जिनवल्लभजीने अनेक दृष्टान्त, उदाहरण आदि देते हुए सिद्धान्त-प्ररूपण करते करते छ महीने लगा दिये । इसको देख कर सभी लोग आश्चर्यचकित हुए और कहने लगे • ये तो स्वयं भगवान तीर्थकर ही मालूम पड़ते हैं, अन्यथा इस प्रकार की अमृतस्राविणी वाणी कहां मिल सकती है?'
समस्यापूर्ति व्याख्यान देने और शास्त्रार्थ करने में जो प्रसिद्धि गणिजीने प्राप्त की, वही समस्या-पूर्ति के क्षेत्र में भी उन्हें सहज सुलभ १जैसलमेर राज्यवती बीकमपुर । ३ मरोठ ।
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