Book Title: Paryushanasthahnika Vyakhyan Author(s): Manivijay Publisher: Hirachand Hargovan Kapadia View full book textPage 8
________________ पर्युषणा - टा व्याख्यान || 8 || 000 वीतरागमहाराजे कथन करेल निर्मल सिद्धांतनुं मन-वचन-कायाना योगोने स्थिर करी, सारी रीते श्रवण करवु ६ । आ मनुष्यजन्मरूपी वृक्षना उपरोक्त छ फलो शास्त्रकारमहाराजे कथन करेलां छे. वळी पण कहुं छे के G पूआ १ पच्चक्खाणं २ पडिक्कमणं ३ पोसह ४ परोवयारो ५ अ । पंचपयारा जस्स, न पयारो तस्स संसारो ॥ १ ॥ 35 भावार्थ:- जिनेश्वर महाराजनी त्रिसंध्य पूजा ॥ १ ॥ तथा पञ्चक्खाण ( प्रत्याख्यान ) || २ || तथा द्विकाल (बे काल) ना प्रतिक्रमण ॥ ३ ॥ तथा पौषध ॥ ४ ॥ तथा परोपकार ।। ५ ।। आ पांच प्रकार जे प्राणियोना अंतःकरणने विषे रमी रहेला छे, तेने संसारसमुद्र तरवो दुस्तर नथी, अर्थात् जिनेश्वर महाराजनी त्रिकाल पूजा करनार तथा जघन्यथी नोकारशी तथा उत्कृष्टपणाथी आंबिल, उपवास, छठ, अट्टमादिकनी तपस्या करनार तथा निरंतर बे कालना प्रतिक्रमण करनार तथा पर्वतिथिने विषे पौषध करनार मनुष्यो अल्पकालने विषे संसारसमुद्रना पारने पामे छे. हवे दिनकृत्यने आवी रीते कही, शास्त्रकारमहाराजा पर्वकृत्यनुं कथन करे छे. यतः “पव्वेसु पोसहाइ, बंभअणारंभतवविसेसाई । आसोचित्तअट्ठाहिअ, पमुहेसु विसेसेणं ॥ १ ॥ " भाषान्तरम् ॥ ४ ॥Page Navigation
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