Book Title: Paryushanasthahnika Vyakhyan
Author(s): Manivijay
Publisher: Hirachand Hargovan Kapadia
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भाषान्तरम्
पर्युषणाष्टाहिका
व्याख्यान
॥ १२ ॥
“ सर्वेः सर्वे मिथः सर्व-संबंधा लब्धपूर्विणः।
साधर्मिकादिसंबंध-लब्धारस्तु मिताः क्वचित् ॥१॥" भावार्थ:-अनादिकालपी अनंता भवो, चोराशी लक्ष जीवयोनिने विषे परिभ्रमणने करनारा आ आत्माए करेला छे. तेमां सर्व जीवो सर्व जीवोनी साथे अनंता संबंधोने पामेला के परंतु साधर्मिक भाइओना संबंधने पामेला जीवो तो क्वचित् गणत्रिना ज होय छे; अर्थात साधर्मिक भाइओना संबंधने पामनारा जीवो थोडा ज होय छे एम श्रीमान् शास्त्रकारमहाराजा फरमान करे छे..
ए साधर्मिक भाइओनी साथे करेली संगति पण महापुन्यने माटे थाय छे, तो तेओने योग्य तेओनी भक्ति करवाथी महापुन्य तथा तेश्रोनी घटित सेवा करवायी महालाभ प्राप्त थाय तेमां आश्चर्य नथी.
यदुक्तम्" एगस्थ सव्वधम्मा, साहम्मिअवच्छलं तु एगत्थ ।
बुद्धितुलाए तुलिया, दो वि अ होइ तुल्लाइं ॥१॥" भावार्थ:-कोइ महापुरुष पोतानी बुद्धिरूपी तुलाने (बाजवाने-कांटाने ) विषे बन्ने पल्लामां जुदी जुदी रीते
॥ १२ ॥

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