Book Title: Paryushanasthahnika Vyakhyan
Author(s): Manivijay
Publisher: Hirachand Hargovan Kapadia

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Page 22
________________ भाषान्तरम् पर्युषणा कह्यु के पंचशैलद्वीपने विषे आवजे, एम कहीने गये छते सोनारे राजाने सुवर्ण आपीने, जे मने पंच-|| ष्टाह्निका | शैलद्वीप प्रत्ये लइ जाय तेने कोटी द्रव्य आपुं आवा पटहनी उद्घोषणा करावी. ते समये एक स्थविरनाविक व्याख्यान (नावनो चलावनार ) पोताना पुत्रने धन आपो सोनारने वहाणमां आरोहण करी समुद्रने विषे घणे दूर लइ गयो अने नाविके सोनारने कह्यु के आ वडवृक्ष समुद्र कांठांने विषे रहेलो छे । असाध्य छे. ते वृक्षना हेठे ॥१८॥ जेवू वहाण जाय के तुरत तुं वडवृक्षनी शाखाने पकडी लेजे. पंचशैल पर्वतथकी भारंड पक्षिोत्रण पगवाळां इहां आवीने निरंतर रात्रिए सुवे छे. तेना मध्यम पगने विषे वस्त्रवडे करी तुं तहारा शरीरने बांधीने रहेजे. प्रभातकाळने विषे उडीने ते पंचशैल द्वीप प्रत्ये जशे तेथी तुं पण त्यां पहोंचीश. वहाण ते पाणीना भ्रमवाळा महा-आवर्तने विषे पडशे तेथी भांगी जशे. हुं तो वृद्ध छु, तेथी वडवृक्षनी शाखाने विषे लागवा (पहोंचवा) समर्थ नथी; परंतु तुं तो युवान छे तेथी वडवृक्षनी शाखाने लागीने पंचशैल प्रत्ये पहोंची शकीश. आवी रीते नाविकना वाक्य प्रमाणे वर्तीने सोनार पंचशैल द्वीपे गयो, अने त्यां हासा, महासाने मळ्यो. त्यारे तेमणे कयु के अमे बन्ने देवीओ छीए ने तुं मनुष्य छे, तो तहारो संग अमाराथी केवी रीते बनी शके ? माटे तुं फरीथी चंपा नगरीमा जइ इंगित मरणबडे करी अमारुं ध्यान धरीने मरण पामीश तो अमारो स्वामि देव थइश; परंतु आ शरीरवंडे तुं भोग भोगवी शकशे नहि ते माटे अग्नि-प्रवेशादि कर. आवा वाक्यने श्रवण करी घरने विषे केवी रीते जाउं ? एम तेणे कहेवाथी देवीयोए पाणिपुट ( हस्तसंपुट) ने विषे लइने चंपानगरीना उद्यानने विषे ॐ मूक्यो. हवे ते सोनारने नागिल नामनो श्रावक मित्र छे. तेने सोनारे का के आजे हुं हासा, प्रहासा देवीओ ॥१८॥

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